tag:blogger.com,1999:blog-1211130135695809376.post105030220666014404..comments2023-08-21T05:30:55.259-07:00Comments on अलक्षित: करोड़पति बनाओ मुझेरवीन्द्र दासhttp://www.blogger.com/profile/12304940504845206338noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1211130135695809376.post-77416909895911648872011-06-03T11:57:23.671-07:002011-06-03T11:57:23.671-07:00घूमती है दुनिया...घुमाने वाला चाहिए...घूमती है दुनिया...घुमाने वाला चाहिए...राजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1211130135695809376.post-82864113975203072010-10-13T11:39:28.058-07:002010-10-13T11:39:28.058-07:00और मुझे अच्छा ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छा लगा कि कवि...और मुझे अच्छा ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छा लगा कि कविता को सही पाठ मिल गया. मैं व्यक्तिगत रूप से आभार करना चाहता हूँ सही पाठ तक पहुँचने के लिए. इधर कविताओं में जुमलों और सूत्र-वाक्यों का ऐसा चलन हो चला है कि पाठक-वर्ग बिना जुमलेबाजी के कविता को कविता की नजर से देखते ही नहीं. अस्मिता , शोषण , लिंगभेद, वर्णवाद के आलावा भी बहुत से पक्ष हैं जो काव्य-सर्जना का प्रस्थान-विन्दु है, उन्हें भी देखा जाना लाजिमी है. आपने जुमलाबाजी के इतर के पाठ को पकड़ा. धन्यवाद.रवीन्द्र दासhttps://www.blogger.com/profile/12304940504845206338noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1211130135695809376.post-46705071108991677582010-10-13T09:02:37.998-07:002010-10-13T09:02:37.998-07:00कविता अच्छी लगी.
सपनो के हत्यारे ही सपनो का विभ्रम...कविता अच्छी लगी.<br />सपनो के हत्यारे ही सपनो का विभ्रम तैयार करते हैं और हम इस विभ्रम के आदी हो चुके हैं इस हद तक कि इसके बगैर जीना मुश्किल हो गया है.साहित्यालोचनhttp://saahityaalochan.blogspot.comnoreply@blogger.com