Monday, May 26, 2008

खिले हुए फूल


खिले हुए फूल
नहीं होते हैं मुस्कुराते हुए
होती है
हमारी मर्जी
उसका मुस्कुराना
जो हम कविता करते हैं
उनके चेहरे की
हर शिकन
नहीं होती प्रताड़ना का संकेत
लेकिन हम,
खड़े हो जाते हैं झंडा लेकर
आखिर करें भी क्या !
संरक्षक होने का भाव मिटता ही नहीं !!

__________________________________ रवीन्द्र दास