
खिले हुए फूल
नहीं होते हैं मुस्कुराते हुए
होती है
हमारी मर्जी
उसका मुस्कुराना
जो हम कविता करते हैं
उनके चेहरे की
हर शिकन
नहीं होती प्रताड़ना का संकेत
लेकिन हम,
खड़े हो जाते हैं झंडा लेकर
आखिर करें भी क्या !
संरक्षक होने का भाव मिटता ही नहीं !!
__________________________________ रवीन्द्र दास
1 comment:
bahut khoob... aaj aapka blog dekha ..sundar
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