Sunday, July 20, 2008

सब्र करो

मेरे दिमाग में भरा हुआ है बहुत सारा गुस्सा
रिसता रहता है जो अन्दर ही अन्दर
असहाय और एकांत.
लेकिन नहीं जाने दूंगा बेकार
अपने गुस्से को ,
बदल दूंगा इसे शब्दों में -
मैं तुम्हें शब्द दूंगा
और दूंगा आवाज़ , ताकि जलन कम हो
तुम्हारी आंखों की
अपने ही कंठ से बोलो तुम
अपनी बात , चाहो तो मेरे साथ साथ
लगाओ आवाज़ -
मन लो कि सीखना है अभी बांकी
इसके साथ, मन लो यह भी ,
कि होना है बांकी अभी सब कुछ
वह जो दीख पड़ता है -
हुआ हुआ सा,
वह है किसी और के हिस्से का
धीरे धीरे खोलो -
अपनी आँखें ,
अपना मन , अपनी इच्छा , अपना ......
मत छलकने दो -
गुस्सा.
आवाज़ में बदलने तक सब्र करो.

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