मेरे दिमाग में भरा हुआ है बहुत सारा गुस्सा
रिसता रहता है जो अन्दर ही अन्दर
असहाय और एकांत.
लेकिन नहीं जाने दूंगा बेकार
अपने गुस्से को ,
बदल दूंगा इसे शब्दों में -
मैं तुम्हें शब्द दूंगा
और दूंगा आवाज़ , ताकि जलन कम हो
तुम्हारी आंखों की
अपने ही कंठ से बोलो तुम
अपनी बात , चाहो तो मेरे साथ साथ
लगाओ आवाज़ -
मन लो कि सीखना है अभी बांकी
इसके साथ, मन लो यह भी ,
कि होना है बांकी अभी सब कुछ
वह जो दीख पड़ता है -
हुआ हुआ सा,
वह है किसी और के हिस्से का
धीरे धीरे खोलो -
अपनी आँखें ,
अपना मन , अपनी इच्छा , अपना ......
मत छलकने दो -
गुस्सा.
आवाज़ में बदलने तक सब्र करो.
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