बड़ी हिम्मत जुटा कर
सहमते हुए पूछती है माँ से
युवती हो रही किशोरी -
माँ! पापा भी मर्द हैं न ?
मुझे डर लगता है माँ ! पापा की नज़रों से ।
माँ! सुनो न ! विश्वास करो माँ !
पापा वैसे ही घूरते हैं जैसे कोई अजनबी मर्द।
माँ! पापा मेरे कमरे में आए
माँ! उनकी नज़रों के आलावा हाथ भी अब मेरे बदन को टटोलते हैं
माँ! पापा ने मेरे साथ ज़बरदस्ती की
माँ! पापा की ज़बरदस्ती रोज़-रोज़ .........
माँ! मैं कहाँ जाऊं !
माँ! पापा ने मुझे तुम्हारी सौत बना दी
माँ! कुछ करो न !
माँ ! कुछ कहो न!
माँ! मैं पापा की बेटी नहीं , बस एक औरत हूँ ?
माँ! औरत अपने घर में भी लाचार होती है न !
माँ! मेरा शरीर औरताना क्यों है!
बोलो न! बोलो न! माँ !
4 comments:
" माँ ! पापा भी मर्द है न ! "
पर टिप्पड़ी करना बडा दुरह है
क्यों की आज के समय में कुछ पिताओ ने
पिता और पुत्री के रिश्तो को बदनाम किया है,
kuchh kalygi pitao ne kalankit kar diya is rishte ko bhi bahut hee marmik rachna
is ko likhte waqt ki aapki manodasha ka me bas andaaz laga raha hu .....bahut kathin vishay pe aapne marmik likha hai
व्यथित कर देने वाली कविता ...सारे रिश्तों के ऊपर आज भी आदम और हव्वा का रिश्ता हावी है यानि सिर्फ औरत और मर्द.... जहाँ कोई बेटी बहन माँ भाभी नहीं सिर्फ एक औरत एक भोग्या ...घृणास्पद सोच .....
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