Wednesday, August 6, 2008

जब भी वह मिलती है

जब भी वह मिलती है
काटती है चिकोटी , जैसे पूछती हो -
ऐसे कबतक रहेंगे हम !
और निरर्थक स्खलित होकर कह देता हूँ मैं
कुछ दिन और.
एकांत में सोचा मैंने जब भी
क्या करेंगे मिलकर ?
तो लगा जरूरी है
क्योंकि वह ऐसा चाहती है
इससे बड़ा कोई नहीं होता
प्रयोजन दुनिया का.
वह मुझे चाहती है ,
शायद अपने लिए.
वह मुस्कुराती है शायद मेरे लिए
और मैं सोचता हूँ -
किसी बहुत बड़ी जरुरत के लिए .......
जबकि ,
देखा है अबतक सिर्फ़ उसको
भोगा है महज उसकी चिकोटी और निस्तेज स्खलन
फिर भी ,
हर बार मुझे लगता है -
मेरी दुनिया कोई और है ........
लेकिन जब भी मिलती है वह
काटती है चिकोटी
जैसे पूछती हो -
ऐसे कबतक रहेंगे हम !

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