चुपके से वह निकला घर से
दिल में ख्वाहिश थी कि एक-एक सब जन के लिए
लाऊंगा खुशियाँ
बात हो चुकी थी
तय हो गया था काम मिलना
घर से निकलते ही उसके
न जाने कहाँ से आ गए बादल
होने लगी झमा-झम
मुसलाधार बारिश
गर्मी से सताई धरती लेने लगी खुलकर सांसे
चिडिया-चुनमुन चहचहाने लगे नवजीवन पाकर
चारों ओर कुदरत मुस्कुरा सी रही थी
लेकिन छूट गई थी उसकी बस
नहीं पहुँच पाया था समय पर
सो नहीं मिल पाया था उसे
वह महीनों चिरौरी कर मिला हुआ काम
बरसात ने उसे
गिरा दिया था ख़ुद की ही नजर में
एक बेरोजगार आदमी
प्रकृति से प्रेम करे तो कैसे
आज हुई थी बरसात
जिसने खुरच कर बहा दिया था उसके
सपनों को, उम्मीदों को
फिर भी आज होने वाली बरसात की
दिल से तारीफ करना चाहता है
वह भी शामिल होना चाहता है
दूसरो के सुख और संतोष में ।
2 comments:
बरसात के धारा ने मुझे अपने बचपन के दिन याद दिला गया। बरसात हर दिल को भाता है......
shukrya, Dhiraj shah ji, jo apko kavita ke madhyam se bachpan ki yad aai.
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