Saturday, July 12, 2008

कवि और आदमी


थक गया है कवि
और सोया है आदमी गहरी नींद में ,
जिसके दिमाग में कई कमरे हैं -
कोई नींद का ,
कोई प्यार का,
कोई बदकारी का तो कोई समझौते का
थका हुआ कवि इर्ष्या करता है तुलसीदास से
कि अकेला आदमी कैसे पढ़ पाता है सारे जागतिक भाव
कैसे विचरण कर लेता है
आदमी के दिमाग के हर कमरे का
* * *
थका हुआ कवि
और सोया हुआ आदमी
आदमी जागेगा , तरोताजा होगा
लेकिन कवि सो नहीं पाएगा
और आदमी ,
पत्नी पर रॉब गाठेगा
बेटे को स्कूल भेजेगा
बॉस की चापलूसी करेगा
और ईमान बेचेगा .....
कवि तरसता रह जाता है रोज़
रच डालू इस आदमी को पूरा का पूरा
कवि और थक जाता है
और झल्लाहट में भूल जाता है.
कि उसे पेशाब करना है
लेकिन आदमी निवृत्त हो लेता है नित्यक्रिया से
* * * * *

आदमी और कवि दोनों के पास आँखें हैं, कान हैं, मन है ....
आदमी जीता है जिन्दगी
और कवि सोचता है
कि लिख डालूं कई सारी जिंदगियां...अक्सर कवि
आदमी से बड़ा बनना चाहता है
इसलिए आदमी,
कवि को दीखता है
कभी खुश
कभी परेशानतो कभी
इत्मिनान से पागुर
करता हुआ
कवि को नहीं दिखता है -
अपना चेहरा ... अपनी इच्छा ... अपना समय
कवि कुंठित है
कवि कुछ लिख लेना चाहता है
थका हुआ है कवि
उसे नींद नहीं आती है
लेकिन आदमी सोया हुआ है
अच्छे समय के आने के विश्वास के साथ ।

1 comment:

महेन said...

वाह। बड़ी जल्दी कविता में ढाल दिया आपने।