Thursday, July 10, 2008

यही है आख़िरी पन्ना


यही है आख़िरी पन्ना
यहीं तक मैं बिखर पाया
कि लाऊँगा नई कॉपी , अगर मैं लौट कर आया
अगर ख्वाहिश -गुबारों से मेरा मन थक गया होता
तो फिर क्या था
कभी करता नहीं कोशिश सफल एक आत्महत्या की
कि यह सौभाग्य है मेरा
जो अन्तिम पृष्ठ तक पहुँचा

तुझे मैं चाहिए तो था
न, पर, मेरी ज़रूरत थी
ज़रूरत थी यही कि मैं तेरे हिस्से में आया था
यहाँ जो सार्थक कुछ है ,
वही साहित्य का टुकडा
अगर मैं बन गया तो फिर मुझे तुम खूब पाओगे
मेरा जीवित ,
तेरा जीवन -नई इक सृष्टि रच लेंगे
तभी 'गर आखिरी पन्ना
बने जो पृष्ठ पहला तो
कहोगे क्यों गए यह दाग देकर ,
जो सुवासित है ?
मगर फिर आ न पाऊँगा
सवारी खोजता-सा मैं !

2 comments:

PREETI BARTHWAL said...

अतिसुन्दर।

रवीन्द्र दास said...

priti,
dhanyavad. lekin shabdon me kanjoosi kyo? aapka blog dekha to laga aapki duniya ki kai rachnaen mere is kavita-sangrah me hai.hamari ichchha-yatra me shamil hoiye aur apni yatra me mujhe bhi saath sajhiye,kam se kam vicharon me,
phir mulakat hogi.