Tuesday, July 15, 2008

औरत और उसका शरीर

खूबसूरत औरत का शरीर खूबसूरत होता है
उसी शरीर में
औरतपन
और औरत-मन रहता है
तय है -
औरत का मतलब पत्नी नहीं
न माँ, न बहन
औरत का मतलब -जीवित औरत शरीर
कहीं कोई ग़लतफ़हमी नहीं,
कोई विरोधाभास नहीं ।
शरीर के आलावा कोई सबूत नहीं
कोई मर्द , कोई औरत, कोई .....
* *
एक दुनिया
एक बाज़ार , और रोज़ बनती बिगडती
तहजीबों की तकरीर
यानि दुनिया का कायदा
बाज़ार की तरकीब
* *
युगों से गुजारकर , तकलीफों से तराशकर
बचाया एक लफ्ज़ -
मूल्य ।
दुनिया और बाज़ार
दोनों कैनवास पर यह जुमला
यूँ बैठा के दोनों एक -म-एक हो गए ।
* *
खूबसूरती एक मूल्य है ,
नहीं छोड़ता है कोई मूल्य को ।
कलाकार , दुकानदार, पंडा चाहे दलाल
सभी करते बातें मूल्यों की
बेशक ,
खूबसूरत औरत का मूल्य होता है
मूल्य ग्राहक देता है
कई बार पसंद आने पर ,
कई बार धोखे में
* *
दुनिया या बाज़ार
नहीं बनते किसी की मर्जी से
कोई बदलता है अपना मन
बदल जाती है -
उसकी दुनिया
दीखता है बदला हुआ बाज़ार
लेकिन हर जगह चलता सिक्का मूल्यों का
कोई माने या न माने,
खूबसूरत औरतें नहीं, शरीर होता है
शरीर की ही दुनिया शरीर का ही बाज़ार
इसका मतलब यह नहीं
के मर्द बाहर होता है शरीर के
तो भी ,
बदली हुई दुनिया
मर्द के ही आजू-बाजू
आगे- पीछे.....

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

सोचने को बाध्य करती यथार्थ कविता। सब कुछ लिख दिया गया है।