Wednesday, July 16, 2008

न इच्छा से बड़ा है कोई

न इच्छा से बड़ा है कोई
और न कोई छोटा अपनी इच्छाओं से.
इच्छाओं की व्याप्ति ,
आदमी की हद है.
बुरा है वह देश, उस भाषा का समाज
जहाँ कहलाती हैं जरूरतें ही
इच्छाएं.
जर दिया जब हार ने
चौखटे में आदमी को
हूक जब निकली कभी तो यह कहा -
रोटी मिले इक पेट भर
घूंट भर पानी मिले......
हूक थी जो
की गई पहचान - यह आवाज़ है
नाद, लय, सुर-ताल से संपन्न यह संगीत है
उसी फोटो फ्रेम में
जो कैद है
महरूम है यह जानने तक के लिए
कि भूख में और राग में इक फर्क है
इक फर्क है !!

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