Friday, August 7, 2009

चुप न रहो, कुछ कहो .....

चुप न रहोअब कहो.......
तुम्हें जो कुछ कहना है।

या लिखा भाग्य का मान सदा यूँ ही सहना है
कहने सुनने से बदली हैं तदवीरें
मैंने देखा है,
मुड़ जाती है वह जो
किस्मत की रेखा है
चुप-चुप घुट-घुट रहना
क्या कोई रहना है!
चुप न रहो , कुछ कहो, तुम्हें जो कुछ कहना है।

बार-बार
और लगातार करना ही होगा
अपने जैसों की खातिर...शायद
मरना ही होगा
मौत सरीखे जीवन में
क्योंकर बहना है ?
चुप न रहो , कुछ कहो, भला 
जो भी कहना है !

नजर उठाओ, देखो
दर्पण वहीं पड़ा है
जरा निगाहें डालो
कोई वहीं खड़ा है
मर्जी अपनी करो
मुझे ऐसे रहना है
चुप न रहो , कुछ कहो
तुम्हें सब कुछ कहना है।

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