
लिपट जाओ ऐसे
जैसे लिपट जाती है लताएँ
पेड़ों से
छा जाओ मुझपर
जैसे छा जाता है मेघ आसमान पर
बना लो मुझे अपना
शरबत में मिठास की तरह
निचोड़ लो मेरा हर कतरा
नींबू की तरह
निगल जाओ मेरा वजूद
जैसे निगल लेती है मृत्यु
उकता गया हूँ
अपने आप से
छिपा लो मुझे कहीं भी
किसी भी तरह
3 comments:
बेकल ह्रदय की सुन्दर सहज प्रस्तुति !!
जब अपने पर अपना बस नहीं चलता तब हम किसी सहायक का आवाहन करते हैं !
bahut badhiya
Post a Comment