Saturday, July 5, 2008

छिपा लो मुझे


लिपट जाओ ऐसे
जैसे लिपट जाती है लताएँ
पेड़ों से
छा जाओ मुझपर
जैसे छा जाता है मेघ आसमान पर
बना लो मुझे अपना
शरबत में मिठास की तरह
निचोड़ लो मेरा हर कतरा
नींबू की तरह
निगल जाओ मेरा वजूद
जैसे निगल लेती है मृत्यु
उकता गया हूँ
अपने आप से
छिपा लो मुझे कहीं भी
किसी भी तरह

3 comments:

saroj said...

बेकल ह्रदय की सुन्दर सहज प्रस्तुति !!

अरुण अवध said...

जब अपने पर अपना बस नहीं चलता तब हम किसी सहायक का आवाहन करते हैं !

prachi said...

bahut badhiya