Wednesday, March 20, 2013

बीस और छोटी कविताएं

१.
उस सुनसान रास्ते पर
एक बांसुरी मिली
उठाकर
जैसे ही होठों से लगाया
एक स्त्री की रोने की आवाज़ निकली
और छिटककर
दूर जा गिरी वह बांसुरी
बन खडी हुई
फुफकारता सांप बन कर
रोने की आवाज़ बदल गई
कहकहे में

मैं हतप्रभ हो
तुम्हें याद करने लगा


२. एक
इतना भी जरूरी न था कि मैं कुछ बोलूं
या कुछ बोलो ही तुम
हम ने महसूस किया ही है
कि टूटता ही है कुछ न कुछ
बोलने से
नहीं बोलने का अर्थ
खामोशी ही नहीं, कुछ और भी होता है

दो
हजारों की भीड में
तुम्हारी आंखें
पहचान लेती है मुझे
और देखकर मुस्कुराती है
क्या खूबसूरत कहलाने के लिए
कुछ और करना
शेष है ?


३.
एक चेहरा
तुम्हारी संभावनाओं सा
एक सच
प्रेम की अभिलाषाओं सा
दोनों के बीच
न बने रिश्ता .. इस जिम्मेदारी को उठाओ
वरना गज़ब हो जाएगा


४.
तुम शक्ति और मुक्ति का उत्सव मनाते रहे
वे व्यभिचार का मोद मनाते रहे
नशे में वे
उत्साह में तुम
पर आलम मदहोशी का ही पसरा रहा
और आधी आधी रात को हरकारा
क्रान्ति नाद करता रहा

सच कहीं बिलखता रहा
अवांछित और तिरस्कृत भ्रूण सा
उस बालरूम डांस फ़्लोर पर पसरा रहा
तिलस्मी भोर
बेबस कवि तुम्हें देता है बधाइयां
सभ्यता के नए आगाज़ की
लो, स्वीकार करो इन्हें


५.
नदियों के विषय में
इतिहास बताता है
कि नदियों ने सर्वस्व लगाकर
सभ्यता विकसित की
और उन्हीं से सभ्य हुए
मानवों ने उन्हें दूषित किया
लेकिन इतिहास की किताब
यह नहीं बता पाती
कि नदियों के दूषित हो जाने से
सभ्यता नष्ट हो जाएगी


६.
तुम अपनी बात कहो
उसे अपनी बात कहने दो
और मुझे भी कहने दो
अपनी बात
हम सायबर स्पेस के लोग हैं
जो एक दूसरे से टकराते नहीं
सो घबराएं ही क्यों
एक दूसरे से


७.
आज़ाद होना नियति रही उसकी
पर कभी न मना पाई
मुक्ति-पर्व का उत्सव
निरीह आंखों से सिर्फ़ देखती रही
टुकुर टुकुर
मुक्ति से लहू-लुहान .. क्षत-विक्षत


८.
नदी को जो नहीं मिले
किनारों की मर्यादा
कुछ देर
एक सैलाब सा नज़र आएगी
फिर बिखर जाएगी
अपने वजूद के साथ


९.
कुछ कोसना, कुछ धमकियां,
कुछ फब्तियां, कुछ गालियां
करीने से सजाना नहीं भी आए
तो लिख दो बेतरतीब ही
हमारे समय के लोग
इसे ही कहते हैं कविता
अपने खिलाफ़ सुनना
और सुनकर मन्द मन्द मुस्कुराना
संपन्नताजन्य अभिचार है
कि जैसे अबोला अबोध शिशु खींचता है
मुसडंडे गुंडे की मूंछें
और वह मुसडंडा लेता है मजा


१०.
कोई पूछता है क्या हाल है
जवाब मिलता है बहुत बढिया
दोनों मुस्कुराते हैं ..


११.
ऐसे ही बने रहो
करता हूं न
तारीफ़
कई और लोग करंगे
कोई जब पुतला बन जाता है
हमें बडा ही भाता है


१२.
तुम्हारे दिल में
जो मैं नहीं उतरा
तो भाड में झोंक दो
मेरी कविता को

अगर बचा रह गया है
दस्तक देना
तो मुझे
होने की तमीज न आई


१३.
उन्हें मिला
मकाम
इन्हें
तमाशा
दोनों गुदगुदते
अन्दर से


१४.
मैं कभी सच के साथ न था
सच के विश्वास के साथ
बना रहा
और होते रहे आघात
बार बार
मेरे विश्वास पर


१५.
सपनों में साझेदारी
चचबा चिल्लाएगा .... बरगलाएगा
घबराना नहीं
गाना जोर जोर से
अपने गीत
यही एक जरिया है
सपनों की साझेदारी का
वह युवा युवा कहेगा
और मार डालेगा भरी जवानी में
चचबा कुंठित है बहुत


१६.
तुमने चन्द पीले पत्ते
टूट कर गिरते देखे
और मान लिया
कि उजड गई कायनात
ये न देखा कि वे पत्ते
नए पत्तों की राह में
रोडे बन कर
सदियों से खडे पर
लहराते रहे इतराते रहे
शोक न मनाओ
खुशियों के फाग गाओ


१७.
सनातन रिवाज है
उगते
और डूबते सूरज की सलामी
दोपहर के सूरज से
खतरा
महसूस किया जाता है
बस सर्दियों के सूरज को
मिल जाता है दाद
गाहे ब गाहे
अपनी हिन्दी पट्टी में


१८.
हाय हाय करना
तो सभी जानते हैं
पर लोग बाग
आवाज़ सुनकर ही देते हैं
अपनी सहानुभूति

वैसे नकली और बनावटी आवाज़ें
बटोर पाती हैं
अधिक सहानुभूति
सो ध्यान से सुनो
अपनी आवाज़ को
कहीं वह असली तो नहीं


१९.
जब वे कहते हैं
उनकी पसलियों से रिस रहा है
मवाद
इन्हें खुशबू आती है
कमलिनी की
भर लेते हैं नथनों में
हालंकि कहते हैं
आह !


२०.
सुनो ओ राजे
नहीं चलना अब हमें
तुम्हारे बनाए रास्ते पर
जहां लगा रखा है
चुंगी नाका
कदम कदम पर

चलना तो पडेगा
सो बना लेंगे खुद
उस बीहडों में रास्ता
और जब तुम
कभी आओगे
उस रास्ते
हम नहीं पूछेंगे
कि कौन हो तुम



                   

1 comment:

Onkar said...

बहुत खूब