मैं याद आता हूँ
अपनी उस प्रेमिका को ,जो मेरी पत्नी नहीं
जब जब उसका सचमुच वाला आदमी
मेरे किए हुए वादे नहीं करता पूरा
तब तब
मैं उसे याद आता हूँ
पति नहीं हो सकना - मेरी बेवसी थी
पत्नी हो जाना उसकी जरुरत
अब भी लगता है ,
उन दिनों ,
हम एक दूसरे को बहुत भाते थे
बहुत दिनों तक
बिछड़ने के भय से हम रोए थे
साथ साथ
उसने बताया शादी के बाद
वो बहुत अच्छे हैं
लेकिन जब भी मैं बच्चों की सी जिद करती हूँ
वो डाट देते है
तब तुम बहुत याद आते हो .....
अपनी उस प्रेमिका को ,जो मेरी पत्नी नहीं
जब जब उसका सचमुच वाला आदमी
मेरे किए हुए वादे नहीं करता पूरा
तब तब
मैं उसे याद आता हूँ
पति नहीं हो सकना - मेरी बेवसी थी
पत्नी हो जाना उसकी जरुरत
अब भी लगता है ,
उन दिनों ,
हम एक दूसरे को बहुत भाते थे
बहुत दिनों तक
बिछड़ने के भय से हम रोए थे
साथ साथ
उसने बताया शादी के बाद
वो बहुत अच्छे हैं
लेकिन जब भी मैं बच्चों की सी जिद करती हूँ
वो डाट देते है
तब तुम बहुत याद आते हो .....
4 comments:
आपकी कुछ कविताएँ जी चुरा ले जाती हैं। घोर उदासी और घोर रूमानियत टपक रही है।
अच्छी कविता ! इस व्यावहारिक जगत में प्रेम के उच्च काल्पनिक आदर्शों के बीच प्रेम का यही यथार्थ है !बधाई इस ईमानदार दृष्टि के लिए !
जब जब उसका सचमुच वाला आदमी
मेरे किये हुए वादे नहीं करता पूरा
तब तब मै उसे याद आता हूँ .!!!! यह वास्तविकता है, पर इसे कह सकने का सामर्थ्य सभी में नहीं ....!!नमन !!
realistic and practical.....!!!
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