तुम्हें चिट्ठी मैं लिखूंगा
जो हो फुर्सत तो पढ़ लेना
नहीं, मैं काह नहीं पाता जुबां से
बात मैं अपनी
कि मैं आकाश हो जाऊँ
अगर तुम हो गई धरती
तुम्हारी मरमरी बांहों को छू कर छिप कहीं पाऊँ
मुझे तकलीफ होती है तुझे जब फोन करता हूँ
कि गोया लाइन कटते ही
अकेला ही अकेला मैं
कभी फुर्सत बना कर तुम
जरा दो हर्फ़ लिख देना
उसीको बुत बनाकर मैं
कभी तो प्यार कर लूँगा
तुमें मेरी लिखावट में मेरे ज़ज्वात के चहरे
तेरे बोसा को जानेमन
कहीं कोई शरारत कर उठे तो
माफ़ कर देना
कि उनका हक छिना है
तो बगावत लाजिमी है
नहीं देना उन्हें बोसा
न उनका मन बढ़ाना तुम
अगर मिल जाए जो चिट्ठी
तो पलकें बंद कर लेना
उसी सूरत में चिट्ठी जरा हौले से सहलाना
जरा हौले से सहलाना
जरा ............... ।
6 comments:
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है .
गार्गी
dhanyvad, gargiji k meri rachna yogy lagi.
इस अपनत्व से लिखेंगे, तो पाने वाला उसे जन्मों तक संभाल कर रखेगा।
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SBAI TSALIIM
प्रेम भरे भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत बढि़या...
रचना बहुत अच्छी लगी।आप मेरे ब्लाग पर आए इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।आगे भी हर सप्ताह आप को ऐसी ही रचनाएं मेरे सभी ब्लाग्स पर मिलेगी,सहयोग बनाए रखिए......
mahamantri(?)ji, kavyamay tippani ke dhanyavad.
एक से बड़कर एक रचना लिखा है आपने! आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
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