कई सदियों तडपता रह गया था आस में तेरी
कि गर्दन को घुमा कर
इक नज़र हम पे भी डालोगे
उसी रस्ते की पुलिया पे,
जहाँ से तुम गुजरते थे ,
वहीं कोने में बैठा जोगडा
जो गीत गाता था
वही मैं था
खुदा ने भी सज़ा ही दी
कि तुम से दूर ही रखा
तुम्हारी बेखुदी ने हम से कीमत ही नही मांगी
न देखा ही कि क्योंकर एक बन्दा
आँख से आंसू बहाता है
कि गोया मैं तड़प कर मर गया
खामोश किस्सा कर
कि मेरी रूह ने सुन ली तेरे लब से
मेरी आहट
तभी से आज तक उस मौत पर
अफ़सोस ही आया
कभी तो कह दिया होता
कि मैं रहता हूँ उस दिल में
तो शायद आज मुझको मौत से शिकवा नहीं होता ।
4 comments:
सुन्दर , भावपूर्ण रचना. बधाई.
bahut bahut dhanyvad, Vandnaji!
मुझे आपका ये रचना बेहद पसंद आया! इसी तरह लिखते रहिये और हम पड़ने का लुत्फ़ उठाएंगे!
bahut khushi hoti hai jab koi rachna ki tarif karta hai.aapka vishesh dhanyvad, Urmi!
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