बियाबान जंगल
घुप्प अँधेरा
और उसमे घिरा कोई आदमजात
आसन नहीं है कल्पना करना
इस स्थिति का
जबतक कि मनुष्य न डूबा हो
घोर निराशा में .......
नहीं दीखता हो कोई भी सहारा
नहीं सुनाई देती हो दूसरे की आवाज़
तभी तो गुम हो जाती है
अपनी भी परछाई
अटक जाती है आवाज़
किसी गहरे में
तो भी यह समझ लेना नहीं है नामुमकिन
कि कोई भी निराश नहीं होना चाहता।
घुप्प अँधेरा
और उसमे घिरा कोई आदमजात
आसन नहीं है कल्पना करना
इस स्थिति का
जबतक कि मनुष्य न डूबा हो
घोर निराशा में .......
नहीं दीखता हो कोई भी सहारा
नहीं सुनाई देती हो दूसरे की आवाज़
तभी तो गुम हो जाती है
अपनी भी परछाई
अटक जाती है आवाज़
किसी गहरे में
तो भी यह समझ लेना नहीं है नामुमकिन
कि कोई भी निराश नहीं होना चाहता।
3 comments:
सटीक अभिव्यक्ति
bahut sunder hai.
sahi hai
Post a Comment