Sunday, July 4, 2010

कोई भी निराश नहीं होना चाहता

बियाबान जंगल
घुप्प अँधेरा
और उसमे घिरा कोई आदमजात
आसन नहीं है कल्पना करना
इस स्थिति का
जबतक कि मनुष्य न डूबा हो
घोर निराशा में .......
नहीं दीखता हो कोई भी सहारा
नहीं सुनाई देती हो दूसरे की आवाज़
तभी तो गुम हो जाती है
अपनी भी परछाई
अटक जाती है आवाज़
किसी गहरे में
तो भी यह समझ लेना नहीं है नामुमकिन
कि कोई भी निराश नहीं होना चाहता।