आती भी थी चिड़िया
गाती भी थी, लेकिन कुछ और
जो नहीं था मेरा अभीष्ट
नहीं भा रहा था मुझे
चहकना उसका , फुदकना उसका
तब,
जबकि मैं कर रहा था उसकी ही प्रतीक्षा
न जाने कब से....!
भरोसा था कि आएगी
अभिलाषा थी कि गाए भी
उसे नहीं मालूम कि सच
सिर्फ सुख ही नहीं देता
दुःख भी देता है सच
हालाँकि नहीं बदल जायेगा वह
छुपाने भर से , चिड़िया के ....... ।
ओ चिड़िया ! तेरे तो पंख हैं
तू उड़ जा खुले आकाश में
तड़पने दे मुझे अकेला ।
गाती भी थी, लेकिन कुछ और
जो नहीं था मेरा अभीष्ट
नहीं भा रहा था मुझे
चहकना उसका , फुदकना उसका
तब,
जबकि मैं कर रहा था उसकी ही प्रतीक्षा
न जाने कब से....!
भरोसा था कि आएगी
अभिलाषा थी कि गाए भी
उसे नहीं मालूम कि सच
सिर्फ सुख ही नहीं देता
दुःख भी देता है सच
हालाँकि नहीं बदल जायेगा वह
छुपाने भर से , चिड़िया के ....... ।
ओ चिड़िया ! तेरे तो पंख हैं
तू उड़ जा खुले आकाश में
तड़पने दे मुझे अकेला ।
5 comments:
Sukra hai ki koi tadap raha hai, Jyadatar log ab isasey door ho chuke hain.
Achchi lagi kavita.
bahut khoob badhai
..बहुत अच्छी रचना
Dr.Bhaskar, Sunil Kumar evam Pavan Dhiman !!! Aap sabka bahut shukriya.
kahna n hoga k log bahut practical ho gaye hain, so kavita ki juban bhi badal gayi hai par ham to samvednaon ke mare hain.
.....संवेदनाओं से जीवित हैं। इसके अभाव में मरे, मारे तो अनगिनत हैं। यूं ही जीवित रहिए।
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