Monday, July 19, 2010

इस हालत में भी अच्छी है उसकी यादाश्त

इस हालत में भी अच्छी है उसकी यादाश्त
' बड़े मजे थे उन दिनों '
उसने ही बताया
वह लड़की थी या है
स्त्रीरोग विशेषज्ञ डाक्टर ने बताया
'खूबसूरत नहीं है '
मुझे लगा
मांसल रही होगी - मुझे ही लगा
'वह क्रांति नहीं चाहती थी '
अफ़सोस वाली शिकन ने जताया
विमूढ़ माँ उसके साथ थी
कोई झल्लाया सा भाई भी
बहुतों ने महसूस किया
'कोखजली गाली नहीं होती '

तारे तोड़कर लेन वाले ने धरती चटा दी
उसके कुछ पैसे गए
इसे सिर्फ मजा आया
जब देने की बरी आई - वह निस्संग हो गया
खेल था या युद्ध ?
देवी नहीं , दासी नहीं तो कौन है बस देह !
प्यार था - व्यापार था ?
कोई टिप्पणी नहीं की इसने
पर आँखों में सवाल तो था -
यौवन या जीवन ?
पैसों की कमी होती तो फंसता समाज
किसी ने मशविरा दिया- तो पाल लेते !
सुस्मित होकर उसने कहा -
बड़े बदतमीज हैं जी आप !

2 comments:

Dr. Bhaskar said...

तीन बार कविता पढ़ी, हर बार उलझ सा गया।

रवीन्द्र दास said...

kabhi kisi ne ise ek achchha sa symposium kahaa tha, aap bhi vahi samajhkar dekhen, shayad kuchh baat bane ! Dr. Bhaskar. shukriya.