बडी होती है ख्वाहिश बडा होने की...
अक्सर इसके लिए लोग
छोटे बन जाते हैं.
मसलन, ओहदेदार लोगों की अनैतिक कामनाओं को
बडी शिद्दत और ईमानदारी से
पूरी करवाते हैं
इसके लिए कोई अमानवीय तरीका भी अपनाते हैं.......
आसान नहीं होता है
बडा कहलाना....
कई किस्सों में बन्द है कई बडे लोगों के
बडा न हो पाने की दास्तान....
जो सुनाते है बडे चाव और मुस्तैदी से
बडे हो गए छोटे लोग.
और इतिहास के कटाक्ष से वंचित रहे गए नायक
विद्रूप आख्यानों में घोंट दिए जाते हैं.....
इतिहासकारों की अपनी सीमा है
कहाँ से लाएँ वे प्रमाण....
और पाठ्यक्रम में शामिल न होने से कैसे पढाएँ शिक्षक भी....
हम पाप को पाप कहने समझने वाले लोग
अपने अपने हिस्से के तालाब डुबकी लेकर
ढूँढते रहते हैं बडा बनने की जुगत....
कि जैसे सिर्फ़ मेरे एक छोटे से कुकृत्य से थोडे ही हो जाएगी
दुनिया मैली....
बडे पापी तो कोई और है...
कभी नहीं सिखाता है कोई भी पाप करना
सिखाते हैं बडा बनने की कोशिश करना..
बाँकी सब कुछ तो समय-परिवेश तो सिखा ही देता है
1 comment:
ख्वाहिश है कि पूरा ब्लॉग पढ़ डालू ..अगर किसी और ने लिखा होता तो संभव था नज़र दौड़ा देता .., अटपटा सा लगा टिप्पणी में ० को देख कर..किन्तु आश्चर्य नहीं हुआ..यही होता आया है ..\
बहरहाल..बड़ा होने के लिए छोटे बनते लोगो को रोज़ देखना.. रोज़ उन्हें भी देखना या अपने में अनुभव करना जो सचमुच बड़े है..मगर दबे है. ..
दास बाबू ..बड़े पापी तो कोइ और है..समय-परिवेश यह भी सिखा रहा है कि किस तरह कलम चला कर अपनी वेदना कह ले या रिलीज होने का प्रयास, कर लेना चाहिए..वो है न एक शे'र जैसा कुछ कि- " भले ही हम पीछे खड़े रहते है, जो बड़े होते है वो बड़े ही रहते है./" ..
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