Tuesday, April 17, 2012

त्रिजटा का लुप्त हो जाना

त्रिजटा का लुप्त हो जाना
उसका यूँ बिसरा देना
नहीं है अच्छा संकेत
अब नहीं बचेगी कोई अशोक-वाटिका
जहाँ वर्ष भर बिताए थे व्यग्र प्रतीक्षा के दिन
शोकाकुल सीता ने
वह सीता, जो अर्धांश है सभ्यता का !
रावण का या राम का होना-जाना
लगा रहता है
सीता , शूर्पणखा और त्रिजटा के विलाप
लाते हैं उद्दीपन
और तरह तरह के परिवर्तन ...
सीता होने की दावेदारी
शूर्पणखा की चाँदमारी
दिख जाती है
आए दिन अखबारों में
न्यूज़ चैनल के विस्तारों में .. एक नहीं हजारों में
अनायास
और जो नहीं दीखता है
वह है त्रिजटा के प्रति आभार
कहीं कहीं .. कभी कभी लाचार और कुरूप स्त्री की तरह
घृणित बनाने का षड्यन्त्र
कविताओं में किया जाता है अवश्य ।

3 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.............
बहुत खूब...............

त्रिजटा को बिसराना अच्छा नहीं संकेत............
गहन भाव !!!!

अनु

rb said...

Ravinder ji aapki har nayi rachna ko din mein kayi baar padhne ke baad uske marm tak pahunchne ke baad hi apni tippani dena chahti hoon, is baar bhi aapka prayaas qaabil-e-tareef hai

Onkar said...

bahut sundar