यहीं तक था विस्तार सपनों का
सफल व्यक्ति
किंकर्तव्यविमूढ है -
आगे क्या करूँ !
हमेशा असंभव लगती सी बात
हो चुकी हकीकत
अब न तो सपना शेष है
न इच्छा
सफल व्यक्ति
किंकर्तव्यविमूढ है -
आगे क्या करूँ !
हमेशा असंभव लगती सी बात
हो चुकी हकीकत
अब न तो सपना शेष है
न इच्छा
समय के अतृप्त लोगों का ईर्ष्या करना
स्वाभाविक है
इस पर बहुत दूर तक सोचना नासमझी है
आइए, कुछ कविता करें
आइए, कुछ कविता करें
उस ज़मीन पर भी कुछ होंगे ही
कच्चे और भोले लोग
हो सकता है
पा जाऊँ मुकाम वहाँ भी
'कुरेदकर
उनके घावों को'
सफल व्यक्ति के सपनों को मिल गया, इस तरह
नया आयाम
सफल व्यक्ति के अहाते में
होने लगा
कविताओं का जलसा
हर इतवार की शाम ..
स्वाभाविक है
इस पर बहुत दूर तक सोचना नासमझी है
आइए, कुछ कविता करें
आइए, कुछ कविता करें
उस ज़मीन पर भी कुछ होंगे ही
कच्चे और भोले लोग
हो सकता है
पा जाऊँ मुकाम वहाँ भी
'कुरेदकर
उनके घावों को'
सफल व्यक्ति के सपनों को मिल गया, इस तरह
नया आयाम
सफल व्यक्ति के अहाते में
होने लगा
कविताओं का जलसा
हर इतवार की शाम ..
1 comment:
बेहतरीन अभिव्यक्ति....
अनु
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