Saturday, October 27, 2012

सफल व्यक्ति के अहाते में

यहीं तक था विस्तार सपनों का
सफल व्यक्ति
किंकर्तव्यविमूढ है -
आगे क्या करूँ !
हमेशा असंभव लगती सी बात
हो चुकी हकीकत
अब न तो सपना शेष है
न इच्छा

समय के अतृप्त लोगों का ईर्ष्या करना
स्वाभाविक है
इस पर बहुत दूर तक सोचना नासमझी है
आइए, कुछ कविता करें

आइए, कुछ कविता करें
उस ज़मीन पर भी कुछ होंगे ही
कच्चे और भोले लोग
हो सकता है
पा जाऊँ मुकाम वहाँ भी
'कुरेदकर
उनके घावों को'

सफल व्यक्ति के सपनों को मिल गया, इस तरह
नया आयाम
सफल व्यक्ति के अहाते में
होने लगा
कविताओं का जलसा
हर इतवार की शाम ..

1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति....

अनु