प्रेम करते हुए 
 वह आध्यात्मिक हो जाए यह आवश्यक तो नहीं
 जबकि हिचकोले खाता हुआ भी 
 कितना डूब कर जीता है वह 
 जैसे किसी अतल की परवाह ही न हो उसे 
 अक्सर कहा करता है 
 जीवन एक ही है मित्रो ! सोचूँगा तो जिऊँगा कब 
 और उसके बाद का उसका ठठाकर हसना 
 नहीं होता है कम किसी दारुण विलाप से 
 हाय मानव ! तुमने क्या अरजा है 
 तहजीव या जुबान  
 
 इतिहास के एकालाप की मानिंद 
 वह खुद के खिलाफ़ हो 
 जब भी प्रेमपत्र लिखने बैठता है 
 न जाने किस गली में गुम हो जाता है 
 शायद उस गली के हिजडों की चुहल से तंग आकर 
 रो उठता है फफक फफक कर 
 कि हाय मानव ! जीने का मतलब 
 मौत की बाट जोहना है 
 
 बिना शर्त मिली थी उसकी प्रेमिका 
 गोकि बडी सादगी से शरमाता है वह 
 कि जैसे सचमुच 
 दिन भर की थकान उसकी मुस्कान के आगे हवा है 
 तो भी वही करता है प्रतीक्षा 
 और हर बार बिना डरे पूछता है 
 देर होने की वज़ह 
 और खामोशी के माहौल में 
 अक्सर वह चिल्ला उठता है 
 क्या बताऊँ तेरी औकात या बोल देगी साफ़ साफ़ 
 तुझे गंवाने में नहीं है कोई परेशानी मुझे 
 गोकि तू शीशे का ग्लास नहीं 
 औरत है 
 और मैं सेफ़्टी पिन नहीं, मर्द हूँ
 और प्रेमिका के नहीं बदले रंग से शरमा जाता है ऐसे 
 कि जैसे सचमुच 
 
 तो शहर की कोलाहल में भी गूँज उठती है  
 वही आवाज़ 
 कि हाय मानव ! तूने इतना भी न जाना 
 प्रेम जबाव है सवाल नहीं 
 फिर भी वह छूता है 
 उन ढलते लिप्सटिक वाले होठों को 
 कितनी खूबसूरत हो तुम ...
 
1 comment:
सटीक प्रस्तुति ||
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