देखो देखो जागा फाग।
बूढा बैरागी भी गाए झूम झूम कर गाए राग ॥
तिनक तिनक धिन मत्त कामिनी
रग रग से रिस रही रागिनी
छन वियोग में रूठी बैठी
शून्य भवन में तृषित भामिनी
सारा वैभव छार लगे जो डसे विरह का नाग॥
व्यभिचारी ने पंख पसारे
खंजन और पंडुकी मारे
पीले पीले दांत खोलकर
हसते खीखी मटकी मारे
रसिया रूप हृदय से दानव पिकी भेस में काग॥
प्रिय के सपने बुनती बैठी
खुद ही खुद में खोयी पैठी
उचक उचक कर कहे उचक्के
भाव न देती है यह ऐंठी
प्रिय का रूप अरूप लिये जो रैन कटे नित जाग ॥
बूढा बैरागी भी गाए झूम झूम कर गाए राग ॥
तिनक तिनक धिन मत्त कामिनी
रग रग से रिस रही रागिनी
छन वियोग में रूठी बैठी
शून्य भवन में तृषित भामिनी
सारा वैभव छार लगे जो डसे विरह का नाग॥
व्यभिचारी ने पंख पसारे
खंजन और पंडुकी मारे
पीले पीले दांत खोलकर
हसते खीखी मटकी मारे
रसिया रूप हृदय से दानव पिकी भेस में काग॥
प्रिय के सपने बुनती बैठी
खुद ही खुद में खोयी पैठी
उचक उचक कर कहे उचक्के
भाव न देती है यह ऐंठी
प्रिय का रूप अरूप लिये जो रैन कटे नित जाग ॥
2 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति
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वाह...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
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