Wednesday, May 5, 2010

मेरे होने का मतलब

जब भी एकांत पाता हूँ
या घिर जाता हूँ अँधेरे में जब कभी
मेरे अन्दर से निकलता है जैसे चुपचाप कोई
पूछता हुआ -
मेरे होने का मतलब ?
यकीन मानिए, दोस्तो !
मैं अप्रतिभ सा झाँकने लगता हूँ बगलें
जैसे चुराता हुआ खुद से ही नजरें।
ऐसा अक्सर होता है
कि मैं पढ़ रहा हूँ कोई किताब
जिसका पन्ना बन जाता है आइना
और झाँकने लगता है मेरा ही अक्स
आँखे चुभोए मेरे चेहरे पर
पूछता हुआ वही सवाल।
अब चूँकि यह सवाल
कोई वाजिब सा सवाल नहीं लगता
बेशक सहमत होंगे आप सब भी
कि हर बात का मतलब थोड़े ही पूछा जाता है
खास कर ऐसे अटपटे सवाल का
लेकिन खाने का जुगाड़ करने, खाने, लीद करने
और बकबक करने के अलावा
मैं करता ही क्या हूँ ?
दो सौ पैंसठ गज का प्लाट
बेटे के एडमिशन का डोनेशन
बेटी के लिए हैसियत से बढ़कर दहेजू दूल्हा
वगैरह , वगैरह ........
और एक हसरत लिए किसी दिन मर जाऊंगा
कि दोस्तों- रिश्तेदारों ने सराहा नहीं
पत्नी का क्या है
वो तो बंधी हुई गैया है
वह हामी भरेगी ही ।

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