Saturday, July 17, 2010

पानी और पानी में फर्क होता है

पानी और पानी में फर्क होता है
वैसे ही जैसे,
फर्क होता है हवा और हवा में।
फर्क, किसी भी तरह का हो
सिर्फ उन्हें दिखता है
जो देखना चाहते हैं
या शायद यूँ कहे कि देखना जानते हैं।
लेकिन , फर्क करना
कई बार, गलत होता है,
कई बार खतरनाक
कई बार जरूरी
तो कई बार मज़बूरी.... ।

फिर भी, नहीं समझ पाते सभी
फर्क का गणित
बस कुछ लोग
'कुछ' बातों में फर्क करना सही मानते हैं
वे ही लोग
कुछ 'अन्य' बातों में फर्क करना गलत
इसके पीछे वे बताते हैं
तरह तरह के कारण

लेकिन कुछ और लोग
महत्त्व देते हैं- फर्क करने के तरीके को
यानि तरीके - तरीके में भी फर्क होता है।
खैर !
फर्क से जुडी बातों का अंत
शायद , न भी हो, लेकिन
फर्क एक हकीकत है
वजह चाहे जो भी हो
फर्क के गणित से बड़ा फर्क पड़ता है
जिन्दगी में
फर्क करने से भी
और फर्क न करने से भी ।

4 comments:

Dr. Bhaskar said...

शायद इसे ही कहते हैं "फर्क़वाद"! जनाब कुछ समानताएं भी होती है जो कभी कभी फर्क़ से ज्य़ादा महत्वपूर्ण होता है।

रवीन्द्र दास said...

maine fark ko kisise jyada ya kam mahattvapurn to nahin kaha, bas fark ki chaturaai karne valon ki or ishara kiya hai. yaad kare, "devide & rule" ki ran-niti ko.

Rohit Singh said...

नजर नजर का फर्क यही होता है। फर्क सोचने में होता है औऱ यही फर्क फर्क पैदा करता है इंसान इंसान में।

रवीन्द्र दास said...

kya hi sahi baat kahi hai, bole to bindas..........