मैं एक कविता लिखता हूँ
सुघर और सुडौल संवेदनाओं से लबरेज
सजाता हूँ एक एक लफ्ज करीने से
और भरता हूँ अर्थ
उसी उत्साह और इत्मिनान से
जैसे भरता है रंग कोई चित्रकार
अपने बनाए चित्रों में
और लगाता हूँ दिठौना
कि नजर न लग जाये किसी की
हाय, कितनी नाजुक और खूबसूरत है मेरी कविता!
और विश्रांति के क्षणों में
ले आता हूँ आपके सामने
कि आप चहक कर करें तारीफ
कि भैया , तुम्हारी कविता तो षोडशी कामिनी से भी अधिक कमनीय है
और मैं प्रशंसा से गदगद
न मिला पाऊं खुद से भी नजर
पसीज उठे मेरा ऐकान्तिक मर्म .............
मैं
या मेरी तरह कोई
नहीं होने देना चाहता है स्वछंद कविताओं को
पहले तो महाकवियों ने बांधा निरीह कविताओं को
तरह तरह के छंदों में
जब कुछ आजाद खयाल कवियों की पहल से
मुक्त हुई छंदों से
बांध दी गई विचारों, वादों और विमर्शों की गुत्थियों में .......
हा ! हतभाग्य ! रच पाता एक भी कविता
मुक्त और स्वच्छंद
सच बताऊँ मित्रो !
मेरी इज्जत बढ़ जाती खुद की नजर में।
सुघर और सुडौल संवेदनाओं से लबरेज
सजाता हूँ एक एक लफ्ज करीने से
और भरता हूँ अर्थ
उसी उत्साह और इत्मिनान से
जैसे भरता है रंग कोई चित्रकार
अपने बनाए चित्रों में
और लगाता हूँ दिठौना
कि नजर न लग जाये किसी की
हाय, कितनी नाजुक और खूबसूरत है मेरी कविता!
और विश्रांति के क्षणों में
ले आता हूँ आपके सामने
कि आप चहक कर करें तारीफ
कि भैया , तुम्हारी कविता तो षोडशी कामिनी से भी अधिक कमनीय है
और मैं प्रशंसा से गदगद
न मिला पाऊं खुद से भी नजर
पसीज उठे मेरा ऐकान्तिक मर्म .............
मैं
या मेरी तरह कोई
नहीं होने देना चाहता है स्वछंद कविताओं को
पहले तो महाकवियों ने बांधा निरीह कविताओं को
तरह तरह के छंदों में
जब कुछ आजाद खयाल कवियों की पहल से
मुक्त हुई छंदों से
बांध दी गई विचारों, वादों और विमर्शों की गुत्थियों में .......
हा ! हतभाग्य ! रच पाता एक भी कविता
मुक्त और स्वच्छंद
सच बताऊँ मित्रो !
मेरी इज्जत बढ़ जाती खुद की नजर में।
1 comment:
Good blog is this.
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