Sunday, August 22, 2010

वह युवती भीगती बरसात में

वह बरसात में भीगती हुई युवती
बचाती हुई खुद को पानी से
हम जैसे मनचलों की नजर से
सिमटी सिकुड़ी हुई
चली जा रही थी तेज-तेज फिर भी
कि देर न हो जाए काम के लिए
शर्मो-हया के बावजूद
चलती चली जा रही है अपने निर्धारित रास्ते से
गज़ब का आत्मविश्वास
और साथ ही अहसास जिम्मेदारी का
बरसात है तो भीगी है सारे दुनिया
पेड़-पौधे, जीव-जंतु, सड़कें
और पूरा समां है गीला-गीला
किन्तु मुझे दिखती है
सिर्फ और सिर्फ वह प्रतिबद्ध नवोढ़ा
भीग कर कर कम पर जाना
नहीं है कोई नई बात
नई बात है नायिका का भीग कर काम पर जाना
हर बार भीगने का अर्थ नहीं होता है-
रति विलास
मैं नत मस्तक हूँ भींगे बदन के अर्थ बदलने से
वह युवती
भीगती बरसात में
बदल रही है कविता का व्याकरण
बदल रही है संभावनाओं का अर्थ।

2 comments:

संगीता पुरी said...

वह युवती
भींगती बरसात में
बदल रही है कविता का व्याकरण
बदल रही है संभावनाओं का अर्थ।

बढिया चिंतन .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

Rohit Singh said...

नया रुप देती भींगी युवती को.....खूबसूरत सोच