मैं तुम्हें प्यार करता हूँ इसका मतलब कतई नहीं होता
कि मैं रोज़ गुलदस्ते लाऊंगा।
इसका कारण धुंधला नहीं, साफ है
कि मैं प्यार करता हूँ।
मैंने अपनी जान की कीमत कभी आँकी नहीं
बस, इसीलिए तुम्हे जान से भी अज़ीज़ कहता हूँ,
इसका मतलब-
इसे सच मत समझ लेना।
कैसे अर्जित किया जाता है जीवन
नहीं जानता हूँ मैं
जैसे जानता हूँ -
कैसे अर्जित किया जाता है टूटते परिवार में अपना वर्चस्व।
तुम मेरी प्रेमिका हो,
तो शायद तुम्हें सबसे अधिक चाहता हूँ
लेकिन मैं चाहता हूँ
और,
तुमसे अलग भी चाहता हूँ मैं
बहुत कुछ को
मसलन, तुम्हारी वो खास सहेली जिसने तुमसे मिलवाया था
जैसे, सिगरेट, जो बिना जतन के पांच रुपये में मिलती है
जैसे मेरा मित्र वैभव, जिसे मैंने अर्जित नहीं किया।
तुम्हें अपने तन के और मन के करीब आने देता हूँ
फिर भी हर नंगेपन की हद होती है!
अपना सिरजा हुआ-
सब कुछ दे सकता हूँ
यह दीगर बात है कि नहीं दे पाता हूँ
उसके परे,
जो भी मेरा है- वह सिर्फ मेरा है।
गौर वर्ण.......
छरहरा बदन..........
सुडौल शारीर........
और जितना जाना है मैंने
कोमल हृदय है तुम्हारा ...
मैंने तुमसे इतना ही चाहा है
इसके अलावा जो भी तुमने दिया है
मैंने लिया नहीं
शायद कहीं छूट गया।
आत्मा या तो बंटती नहीं
या फिर जुटती नहीं
यों कि हर पतन के बाद का कम्पन
नए 'मैं' का सृजन करता है
हर बार पाता हूँ
हर बार छूट जाता हूँ
हर बार तुम्हे अपने में समाते देखता हूँ
हर बार तुम्हे अलग-थलग पाता हूँ
गीत लिखता हूँ तुम्हारे लिए
वह मेरा ही रह जाता है
अपने को सौंप देता हूँ तुम्हारे लिए
वह भी मेरा ही रह जाता है
फिर भी....
इसका मतलब यह मत समझ लेना
कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता।
कि मैं रोज़ गुलदस्ते लाऊंगा।
इसका कारण धुंधला नहीं, साफ है
कि मैं प्यार करता हूँ।
मैंने अपनी जान की कीमत कभी आँकी नहीं
बस, इसीलिए तुम्हे जान से भी अज़ीज़ कहता हूँ,
इसका मतलब-
इसे सच मत समझ लेना।
कैसे अर्जित किया जाता है जीवन
नहीं जानता हूँ मैं
जैसे जानता हूँ -
कैसे अर्जित किया जाता है टूटते परिवार में अपना वर्चस्व।
तुम मेरी प्रेमिका हो,
तो शायद तुम्हें सबसे अधिक चाहता हूँ
लेकिन मैं चाहता हूँ
और,
तुमसे अलग भी चाहता हूँ मैं
बहुत कुछ को
मसलन, तुम्हारी वो खास सहेली जिसने तुमसे मिलवाया था
जैसे, सिगरेट, जो बिना जतन के पांच रुपये में मिलती है
जैसे मेरा मित्र वैभव, जिसे मैंने अर्जित नहीं किया।
तुम्हें अपने तन के और मन के करीब आने देता हूँ
फिर भी हर नंगेपन की हद होती है!
अपना सिरजा हुआ-
सब कुछ दे सकता हूँ
यह दीगर बात है कि नहीं दे पाता हूँ
उसके परे,
जो भी मेरा है- वह सिर्फ मेरा है।
गौर वर्ण.......
छरहरा बदन..........
सुडौल शारीर........
और जितना जाना है मैंने
कोमल हृदय है तुम्हारा ...
मैंने तुमसे इतना ही चाहा है
इसके अलावा जो भी तुमने दिया है
मैंने लिया नहीं
शायद कहीं छूट गया।
आत्मा या तो बंटती नहीं
या फिर जुटती नहीं
यों कि हर पतन के बाद का कम्पन
नए 'मैं' का सृजन करता है
हर बार पाता हूँ
हर बार छूट जाता हूँ
हर बार तुम्हे अपने में समाते देखता हूँ
हर बार तुम्हे अलग-थलग पाता हूँ
गीत लिखता हूँ तुम्हारे लिए
वह मेरा ही रह जाता है
अपने को सौंप देता हूँ तुम्हारे लिए
वह भी मेरा ही रह जाता है
फिर भी....
इसका मतलब यह मत समझ लेना
कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता।
No comments:
Post a Comment