Sunday, April 17, 2011

फूल तो खिलेंगे

फूल तो खिलेंगे

मैंने कई बार अपने पड़ोस के बच्चों को

लड़ते देखा, झगड़ते देखा ...

मैंने सोचा ...

कहा भी उनके माँ - बाप से

कि निकल रहे हैं बच्चे हाथ से ..

मेरी इज्जत करते हुए

उन्होंने स्वीकार भी किया था

मेरा अतिक्रमण.

मैं बहुत दिनों तक

गर्वीली गरिमा के साथ विनत रहा था

फिर आया अचानक बरसात का मौसम..

अचानक ... क्योंकि नहीं था मैं तैयार ...

देखते ही देखते

खिल उठे थे रंग बिरंगे बेख़ौफ़ फूल

मैं बेचैन हो उठा ..

अचानक फूलों का यूँ खिलना

नहीं है शुभ ...

तय किया कि करूँगा सत्याग्रह

प्रकृति के विरुद्ध

लड़ जाऊंगा ईश्वर से ...

कि इसी बीच दिख गए वे बच्चे

एक दूसरे के जीवन से सराबोर...

तभी ठहर गया था मेरा चिन्तन

और टूट गयी बेड़ियाँ...

हो गया मुक्त मैं भी ... सम्भावना की त्वरा से...

फूल तो खिलेंगे...

चाहे उसमें मेरी मर्जी शामिल हो ... या न हो।

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गहन अभिव्यक्ति

रवीन्द्र दास said...

धन्यवाद संगीता स्वरूप...आपके आने और सूत्र-परक टिप्पणी के लिए.