सखि री मोहे ! प्रियतम के घर जाना ...
सुध बुध सब बिसराना ...सखि मोहे साजन जल बहि जाना
लुका छिपी का खेल न खेलूं
छाँव न चाहूँ.. धूप न झेलूं
अबकी सावन छत न डालूं ...यह घर है बेगाना ... सखि री ...प्रियतम के घर जाना ...
बाहर भीतर सब रस पागे..
जादू चले.. न मंतर लागे
अपना अपना क्रिया चरित्तर से ना मन बहलाना सखि री ..प्रियतम घर ही जाना
हंसना रोना सपन सरीखा
गुजर जाय मन तीखा तीखा
लेन-देन में प्रेम न सीखा..भँवर घिरे अकुलाना ..सखि री ... प्रियतम घर ही जाना
जनम जनम तक सेज सजाया
जग मद में डूबा.... उतराया
यौवन रस नद- नार बहाया .. हारे हिय हरसाना .. सखि री .. घर प्रियतम के जाना ..
शीतल जल प्रिय प्यास न भावे
साँझ ढाले फिर पास न आवै
आतम तडपे.. विरहा गावै.. क्यों पाहुन बिसराना .. सखि री ..प्रियतम के घर जाना ...
सखि री मोहे प्रियतम के घर जाना ....
सुध बुध सब बिसराना ...सखि मोहे साजन जल बहि जाना
लुका छिपी का खेल न खेलूं
छाँव न चाहूँ.. धूप न झेलूं
अबकी सावन छत न डालूं ...यह घर है बेगाना ... सखि री ...प्रियतम के घर जाना ...
बाहर भीतर सब रस पागे..
जादू चले.. न मंतर लागे
अपना अपना क्रिया चरित्तर से ना मन बहलाना सखि री ..प्रियतम घर ही जाना
हंसना रोना सपन सरीखा
गुजर जाय मन तीखा तीखा
लेन-देन में प्रेम न सीखा..भँवर घिरे अकुलाना ..सखि री ... प्रियतम घर ही जाना
जनम जनम तक सेज सजाया
जग मद में डूबा.... उतराया
यौवन रस नद- नार बहाया .. हारे हिय हरसाना .. सखि री .. घर प्रियतम के जाना ..
शीतल जल प्रिय प्यास न भावे
साँझ ढाले फिर पास न आवै
आतम तडपे.. विरहा गावै.. क्यों पाहुन बिसराना .. सखि री ..प्रियतम के घर जाना ...
सखि री मोहे प्रियतम के घर जाना ....
1 comment:
सच मुख पुस्तक के माध्यम से पहली बार किसी कवि,दार्शनिक और मनुष्यता के प्रेमी मनुज से मेरा मानसिक नाता बना है...
मै भरसक प्रयास करता रहुँगा इस रिश्ते को गरिमा प्रदान करने की......
"सखि री मोहे प्रियतम के घर जाना" बेहतरीन रचना है...
अब मै आश्वस्त हूँ कि, मेरा भविष्य जिम्मेदार हाँथों में सुरक्षित है।
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