Wednesday, May 11, 2011

जी करता है कहीं छुप जाऊं

मन बहुत उदास है
बेचैन है
जी करता है कहीं छुप जाऊं
अल्ल-सुबह से कोशिश कर रहा हूँ
पर अफ़सोस .....
इतनी बड़ी दुनिया में कोई एक कोना नहीं
जहाँ छिप सकूँ मैं
ऐसा नहीं है कि मेरे बिना काम न चले दुनिया का
नहीं ... इतना जरूरी नहीं हूँ मैं
फिर भी ... बेवजह आवाज दे ही देते हैं लोग
वैसे ही
जैसे चलते हुए जिम्मेदार लोग ...
बस यूँ ही झटक लेते हैं पत्ते
रास्ते पर खड़े छोटे छोटे पौधों के
मन उदास है
फिर भी दुनिया सजी है मेले की तरह
तुम्हारा चेहरा हो उठा अधिक वाचाल
जब मैंने बताया कि उदास हूँ मैं
तुमने मुस्कुरा दिया
आज मन बहुत उदास है .... यह नहीं बताऊंगा मैं
वरना दोस्त और पडोसी
सार्वभौमिक सत्य के वाक्यों से छलनी कर देंगे हृदय को

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