Thursday, September 22, 2011

जनम जनम की प्यासी अँखियाँ ,
प्रीतम सेज सजाओ जी ।
रैन गया अब तो कछु बोलो
या फिर अंग लगाओ जी ॥
बैरी जग मोहे कुलटा बोले
जग की रीत निभाओ जी ।
जौबन जीबन रीत बीत गए
अब तो हिय हरसाओ जी ॥
मूरख जन समुझावन आवत
वाको कछु समझाओ जी ।
'दास' भले दरवेश पिया जू
विरहन क्यूँ तरसाओ जी ॥

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