ओ प्रिये !
आओ प्रणय के गीत गाएँ ।
शब्द को छूकर
उन्हें आकार देकर ,
तिक्त जीवन के पलों में भी
तनिक माधुर्य लाएँ ।
यह कठिन संसार सारा
जल रहा है
मौन करुणा है कहीं
वैर बन प्रतियोगिता
मानव हृदय में पल रहा है
चलो,
स्वर-आह्लाद से कुछ गुनगुनाएँ ।
जीत कर जीता भला क्या
जब अकेला ही खडा है
स्वप्न बन दुस्स्वप्न देखो
बन गया रोडा बडा है
क्यों लडा, अफ़सोस कर मत
चलो नव-पथ फिर बनाएँ ।
कर पलायन जो चला संसार तज कर
क्षुब्ध बनकर भटकता ज्यों शून्य भजकर
आत्म का दीपक न बुझता
वहीं शरणागत बनें हम
हृदय के आकाश को
सीमारहित
विस्तृत बनाएँ ।
आओ प्रणय के गीत गाएँ ।
शब्द को छूकर
उन्हें आकार देकर ,
तिक्त जीवन के पलों में भी
तनिक माधुर्य लाएँ ।
यह कठिन संसार सारा
जल रहा है
मौन करुणा है कहीं
वैर बन प्रतियोगिता
मानव हृदय में पल रहा है
चलो,
स्वर-आह्लाद से कुछ गुनगुनाएँ ।
जीत कर जीता भला क्या
जब अकेला ही खडा है
स्वप्न बन दुस्स्वप्न देखो
बन गया रोडा बडा है
क्यों लडा, अफ़सोस कर मत
चलो नव-पथ फिर बनाएँ ।
कर पलायन जो चला संसार तज कर
क्षुब्ध बनकर भटकता ज्यों शून्य भजकर
आत्म का दीपक न बुझता
वहीं शरणागत बनें हम
हृदय के आकाश को
सीमारहित
विस्तृत बनाएँ ।
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