Friday, March 30, 2012

कोई बताता है तुम्हारे विषय में

कोई बताता है तुम्हारे विषय में
कि तुम्हारे होठ, तुम्हारी आँखें .. और तुम !
तुम... मेरे अज्ञात जीवन का अनुमानित स्रोत.
मैं अपने को अटकलों में टटोलता गहन रात्रि में
पा लेता हूँ कई कई बार ...

मेरा कोई मित्र
उसकी कोई प्रेयसी
और तुम !
तुम .. किसी बाप की बेटी
किसी देवता की अर्पिता
कोई ... सचमुच अन-अर्थ सर्वनाम
मैं कई युगों दूर .. कई मीलों के फ़ासले पर
तुम्हें लिखता हुआ
कोई वह .. जिसे मैं तुम बनाता हुआ !

अतृप्ति मेरी है .. शगल मेरा है
सुनता हूँ अपनी आँखों से देखता हुआ
तुम्हारी भी .. यानी किसी की ऐसी ज़रूरत
भूल जाता हूँ कि चार रोटी सेंक कर खानी है
मैं भूखा हूँ .. भूल जाता हूँ
अभी जब निढाल हो जाऊँगा .. याद करूँगा
अपने प्राइमरी के मास्टरजी को
जो पाठ के भूलने पर अक्सर दोहराते थे -
खाना भूल गए क्या !
निरुत्तर हो जाना .. अब असह्य लगता है
हाँ ऽऽऽऽ भूल गया था खाना

ओ मेरे तुम !
मेरे थक जाने से नहीं मिलेगा तुझे भी आराम
नहीं आ जाएगी कोई मीठी नींद

अखबारों में किसी के मर जाने की सूचनाएँ
तुम्हारे होने की सूचना
कभी भी नहीं छापते ..
न कभी होठ .. न आँखें .. न तुम
लेकिन वह फिर बोलेगा तुम्हारे विषय में
मैं स्पन्दन हीन ...
नहीं ढूँढ पाऊँगा उसकी आँखों में तुम्हारी आंखें
उसके शब्द में तुम्हारे होठ
आस-पास खडे-सहमे दरख्तों में तुम्हारा ज़िस्म
तुम्हारा जिसम ..
जिसमें शायद तुम भी . तुम्हारी आंखें भी .. होठ भी

ओ मेरे तुम !
किसी के कहे को दे जाओ अर्थ
और मुझे जीवन
ओ मेरे तुम !!

4 comments:

rb said...

Ravinder ji jo likhne ja rahi hoon vo maine mehsoos kiya hai isliye us per poori tarah yaqeen kijiyega, maine kayi kaviyon ki kavitaayein aur shaayari padhi hai, jis tarah shayari mein Ghalib ke likhne ka style bilkul alag tha, main kavitaayon mein aapki kavitaayein padhkar theek vaisa hi feel karti hoon , aapke kisi baat ko kehne usey express karne ka tareeqa vaisa hai jaisa maine kahin nahi padha, bahut gehra saarthak aur antar tak bhednewaala,, is kavita mein bhi kisi ke prem mein ekikaar ho jaana , sudh budh khokar usi mein leen hone ki baat behad khoobsurti se bayaan ki hai

ravindra k das said...

अच्छा लगा ... आपकी यह तारीफ़ करना ... कविता लिखना सार्थक हो गया रीना जी ! बहुत बहुत शुक्रिया !!
रवीन्द्र के दास

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह!!!!!!!!!!!!!!!!

प्रशंसा के लिए इस कविता के स्तर के शब्द कहाँ से लाऊं..........

बहुत सुन्दर....भाव पूर्ण रचना....
बधाई ऐसी कृति को जन्म देने के लिए.
अनु

Onkar said...

sundar rachna