Thursday, January 31, 2013

कुछ कविताएँ

[एक]
देखो
वह गुलाम सो रहा है
उसे मत जगाओ
हो सकता है
वह आज़ादी के सपने देख रहा हो

देखो देखो
वह गुलाम
अभी भी सो रहा है
उसे फ़ौरन जगाओ
और जगाकर अभी
आज़ादी का मतलब बताओ

[दो]
यह रास्ता
तुम्हारे घर का है
या तुम्हारा घर
इस रस्ते पर है
लोगों को तमीज़ नहीं
तुम हो
तुम्हारा घर है
तो रास्ता भी है
यह रास्ता तो
पहले भी था सरकता हुआ
पर तुमारे घर का न था
गोकि तुम तुम न थे
कोई वह थे ..
रास्ते के लोग
बडे अहमक होते हैं


 [तीन]
उसकी ख्वाहिश रही
लोग खूबसूरत कहें उसे

तब
सब कुछ लगा दिया
दाँव पर

अब
अभिशप्त जीवन बचा है
उसके पास ..


 [चार]
पसंद है
उन्हें
हरियाली
अपने किचन गार्डन की
मुझे लगता है
मत बान्धो
उसे
प्रकृति से प्यार करना
उसे
संदूकची में बंद
कर लेना नहीं, मुक्त करना है
देखा ही होगा
रिश्तों को घुटते हुए
जब कि नदियाँ
बलखाती थी
हमें बुलाती थीं
पर अब तो गुर्राता है
समन्दर

आवारगी
नहीं होती वहीं आवारगी
जो लिखा है
तुम्हारी किताब में
वह वास्तविक विस्तार है
नहीं होगी
नष्ट सभ्यता या धरती ही
 

3 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

अच्छी लगी - बहुत सुन्दर
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
New post तुम ही हो दामिनी।

ANULATA RAJ NAIR said...

बेहतरीन रचनाएं.....
सभी लाजवाब...

अनु

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

3 नंबर की बात कुछ और है