Saturday, March 9, 2013

त्रिजटा के प्रति [ २८ कविताएं]



त्रिजटा के प्रति

त्रिजटा का लुप्त हो जाना
उसका यूँ बिसरा देना
नहीं है अच्छा संकेत
अब नहीं बचेगी कोई अशोक-वाटिका
जहाँ वर्ष भर बिताए थे व्यग्र प्रतीक्षा के दिन
शोकाकुल सीता ने
वह सीता, जो अर्धांश है सभ्यता का !
रावण का या राम का होना-जाना
लगा रहता है
सीता , शूर्पणखा और त्रिजटा के विलाप
लाते हैं उद्दीपन
और तरह तरह के परिवर्तन ...
सीता होने की दावेदारी
शूर्पणखा की चाँदमारी
दिख जाती है
आए दिन अखबारों में
न्यूज़ चैनल के विस्तारों में .. एक नहीं हजारों में
अनायास
और जो नहीं दीखता है
वह है त्रिजटा के प्रति आभार
कहीं कहीं .. कभी कभी लाचार और कुरूप स्त्री की तरह
घृणित बनाने का षड्यन्त्र
कविताओं में किया जाता है अवश्य ।

युद्ध को जी रही है त्रिजटा

वह जी रही है
लगातार युद्ध को ..
त्रिजटा को देखकर
यह समझ लेना
कतई मुश्किल न था"
त्रिजटा सुनो


सुनो त्रिजटा!
ऊपर जाने की सीढी
वही है
जो
नीचे उतरने की है
सीढियों का सही इस्तेमाल
सीखो त्रिजटा

त्रिजटा !
इतनी जल्दी मत करो
दूसरी राक्षसियों को
दौडते देख
तुम भी दौडो मत
रावण
इतना शक्तिशाली होकर भी
नहीं दे पाएगा
राजरानी होने का सम्मान


त्रिजटा मशहूर है
मगरूर है
लेकिन गमों से चूर है
जो देखिए दिल जल उठे
धरती पे ऐसी नूर है
वो परी है हूर है
ख्वाब में पल कर बढी
सच की जमीं से दूर है
है बात उसकी दूर तक
त्रिजटा बहुत मशहूर है

त्रिजटा
लौट
आओ
वरना
बिखर जाएगी कायनात

फिर से लुप्त है त्रिजटा !
और कोई नहीं ले रहा है जिम्मेदारी इसकी
सारे सुन्दर चेहरे वाले
त्रिजटा की बढती लोकप्रियता से बौखला गए हैं
अखबारों और न्यूज़ चैनलों ने तो साफ़ कर दिया था
पहले ही
और इन पर शक करना हो सकता है जोखिम भरा
अब आप ही सुझाएँ कोई राह
जो हासिल हो सुराग कोई
फिलहाल तो करता प्रार्थना
कि ठीक ठाक हो त्रिजटा ...

संभावना तो सिर्फ़ त्रिजटा से है
और लुप्त है त्रिजटा
हो सकता है षड्यंत्र हो किसी का ...
पर लौटेगी त्रिजटा
इसी यकीन से चल रहा है
दुनिया का कारोबार

मैं जो तुम्हें बचा रहा हूँ
यह मेरी खुदगर्जी है
कि शायद इसी बहाने बच जाए
मेरा भी वज़ूद
ओ त्रिजटा ..
मैं कोई उपकार नहीं कर रहा
तुम पर

१०
आसपास की जो कुछ है
त्रिजटा की दुनिया है
सभी त्रिजटा का ही संकीर्तन करते हैं
रूप भिन्न भिन्न हो ..
कुछ फ़र्क नहीं पडेगा

११
त्रिजटा उदास
सो कविताएं भी उदास

१२
तुम्हारी पीडा को
यहाँ स्थान नहीं मिलेगा
यहाँ सिर्फ़
कुलीनों के दर्द को सराहा जाता है
तुम तो दासी-वर्ग से हो
[ऐसा कोई वर्ग स्त्री-चिन्तन में नहीं है]
इस लिए तुम तडपो .. मरो
कभी जब
तुम्हें पहचान दिला पाऊँगा
दूँगा तुम्हें आवाज़
और तब तुम आना
सुनो त्रिजटा !

१३
खामोश
मुस्कुरा रही है
त्रिजटा
मैं सुनना चाहता हूँ उसे

१४
आज हंसेगी त्रिजटा
जरूर हंसेगी
आज मैं भी खुश हूँ त्रिजटा
तुम्हारे लिए

१५
त्रिजटा आइना है अकेलेपन का
जहाँ मैं देख सकता हूँ
अपना ही सुस्मित चेहरा ..
वैसे खोज करेंगे पुराणों में
तो मिल जाएगी इसकी
कोई न कोई पहचान
लेकिन नहीं दिखेगा उसमें अपना चेहरा
वह त्रिजटा
जिसे आप उद्भूत करेंगे
आप उसमें झाँक सकेंगे जी भर के
अकेला कवि का सच है त्रिजटा

१६
त्रिजटा !
तुम्हारी खामोश मुस्कुराहट ने
यहाँ खलबली मचा दी है
या तो मुस्कुराना बन्द करो
या बोलो शब्दों में

१७
जो आपने
न देखा
मुस्कुराता चेहरा
त्रिजटा का
तो आपने
क्या खाक
खूबसूरती देखी

१८
तुम्हारी बातें
तब से हैं जब
पैदा भी नहीं हुआ था सच
तुम्हारी बातें बेहतर है
किसी भी सच से
मंत्र से
संविधान से
मैंने सबको बेअसर होते देखा है
नहीं होती बेअसर
तो तुम्हारी बातें ..


१९
त्रिजटा मुस्कुराई
ठहरे दरख्त झूम उठे

२०
त्रिजटा के लुप्त होने से
नहीं रुकी सभ्यता की रफ़्तार
नहीं रुकती है
किसी भी सूरत में
बस चलती ही रहती है दुनिया
कितना अच्छा होता त्रिजटा !
कि रूक जाती दुनिया
ठहर जाती सभ्यता !!

२१
हँसो, हँसो तुम त्रिजटा
निश्छलता है तुम्हारे हास्य में
मैं तंग आ चुका हूँ
सीताओं और शूर्पणखाओं की
औपचारिक मुस्कानों से"
मत पूछो यह प्रश्न
कि त्रिजटा कौन है
शुक्र मनाओ
जो वह मौन है .


तुम्हें भी तो खुद पर गुरूर होगा त्रिजटा
लेकिन लोग नहीं करेंगे
तेरे विषय में चर्चा नहीं करेंगे
तुम नहीं शूट करती हो उनके स्टेटस को
कुछ बदतमीजी करो त्रिजटा
चर्चा में आने का यही तरीका है आजकल

२२
विभीषण का गुप्तचर
त्र्रिजटा के पीछे पडा है
विभीषण भयभीत है
त्रिजटा की निष्ठा से
पर शाश्वत है त्रिजटा
त्रिजटा मेरे हृदय में है

२३
हँसो, हँसो तुम त्रिजटा
निश्छलता है तुम्हारे हास्य में
मैं तंग आ चुका हूँ
सीताओं और शूर्पणखाओं की
औपचारिक मुस्कानों से
मैं नींद में भी बोलूँगा तो यही
कि संस्कृति का सत्य
तुम्हारी सरलता से अबतक शेष है
इसे और स्निग्ध करो त्रिजटा
हँसो ..
तुम और हँसो त्रिजटा



२४
त्रिजटा
अपने भविष्य को
संवारने में
व्यस्त है
सीता की सुरक्षा
और दिलासा देने से
नहीं मिलेगी मुक्ति
उसे मुक्ति चाहिए
जहाँ शूर्पणखाएँ व्यस्त है
सीता कहलाने में
और सीताएँ होड कर रही
शूर्पणखाओं से
वहाँ त्रिजटा कर रही है
प्रेम
यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है
अब वह नहीं करेगी
रावण या राम की शक्ति की भक्ति
बढेगी
और जीवन की सीढियाँ चढेगी
अपनी रुचि और आकांक्षा से
त्रिजटा अब नहीं करेगी
किसी आदर्श का अभिनय ..
त्रिजटा कुपित है
अपनी उपेक्षा से
राम राज्य में
विप्लव का आना
तय है अब

२५
त्रिजटा मिल चुकी है
सूत्रों के अनुसार,
प्रेम करती देखी गई है त्रिजटा ..
अब राम-राज्य के उपनिवेश
लंका के विभीषण राज्य
संकट में घिर सकता है
त्रिजटा के प्रेम करने को
बडी ही गंभीरता से ले रहे है
राम-राज्य के कूटनीतिज्ञ ..

२६
त्रिजटा का कभी कभी कौंधना
कोई शक नहीं कि भोक्ता की मानसिक अस्थिरता है
किन्तु निर्मूल नहीं है त्रिजटा
बडी गहरी जड है उसकी
मानुसी भी है त्रिजटा
और असाधारण भी है ..
जब भी मुखर होगा त्रिजटा का मौन
सकते में आ जाएगी सभ्यता
कठिन होगा काबू करना
नदी का उफ़ान
त्रिजटा कोई उफ़नती नदी है करुणा की ।


२७
त्रिजटा के माँ-बाप
नहीं थे गलत
योग्य थे .. और सिद्धान्त से बंधे भी
अपने अपने सच के साथ
बह निकले दोनों
अपनी अपनी दिशाओं में
त्रिजटा ..
नहीं बना पायी थी अपना स्थान
उनके सच
और सिद्धान्तों में दखल
तभी तो खडी है अकेली कहीं
त्रिजटा का अकेला होना
नई सभ्यता का आगाज़ है
या पुरानी संस्कृति का अधःपतन
इस प्रश्नों से नहीं जूझती है त्रिजटा ।

२८
आसान था
त्रिजटा के विषय में
कुछ भी कल्पना कर लेना
लेकिन यही बात
त्रिवेणी पर लागू होती
त्रिजटा
और त्रिवेणी - दो सभ्यताएँ हैं
अलग और भिन्न प्रकृतिक
होते हुए भी, एक ही देशकाल में
गतिमान है .. प्रवहमान हैं ...

मैं अकेला और तिरस्कृत कवि
त्रिजटा के त्रिजटा बने रहने का जिम्मेदार
त्रिवेणी को मानता हूँ
और लगातार आहूत कर रहा
अन्य पुरोहितों को
जिस दिन किसीने कर ली स्वीकार
मेरी पुकार
उस दिन से त्रिजटा की बद्ध जटाएँ
होने लगेगी शिथिल
और गैर जिम्मेदार शहरी छोड देंगे
अनाप-शनाप बोलना
त्रिजटा के विषय में ..

4 comments:

रविकर said...

गजब आदरणीय-
बढ़िया प्रस्तुति-
हर हर बम बम

जटाटीर-कैलाश पर, जमते रक्तस्नायु |
रावण सीता को हरे, लड़ कर मरा जटायु |
लड़ कर मरा जटायु, मोक्ष प्रभु राम दिलाते |
क्षिति जल पावक वायु, गगन कुछ ना कर पाते |
टिके "वा-टिके" सीय, डराती दुष्टा कुलटा |
हिम्मत देती किन्तु, सदा बेनामी त्रिजटा ||

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

कुछ लोग इतना उत्कृष्ट लेखन कार्य करते हैं कि उन्हें कुछ नया पढने की आवश्यकता नहीं रहती ।

आभार आदरणीय-

कालीपद "प्रसाद" said...

त्रिजटा के माध्यम से आपने बहुत कुछ कह दिया -बढ़िया प्रस्तुति
latest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
latest postमहाशिव रात्रि

मेरा मन said...
This comment has been removed by the author.