Monday, April 4, 2011

स्त्री – परंपरा

अनुभवी स्त्रियाँ,

कई कई रूपों में ....

कभी माँ..

कभी मौसी, भाभी या बड़ी दीदी बनकर...

या कभी जिठानी, सास, दादी या पड़ोसन होने के नाते

बताती रहती हैं-

अपने अपने अनुभव...

यातनाएं स्त्री-जीवन के...

कि बेटा! सहना ही होता है सब.

बताने का ढंग,

हो सकता है, नहीं होता हो कवितामय

भावनापूर्ण अथवा सहृदय...

कभी उलाहना के रूप में...

तो कभी परम्परा या जिम्मेदारियों की शक्ल में...

लेकिन सनातन से बताती रही हैं

अनुभवी स्त्रियाँ ..

अपने स्त्री होने की त्रासदी...

कई कई बार...

दिखती है कोई अनुभवी स्त्री प्रताड़ित करती सी

किसी दूसरी स्त्री को ....

जबकि होता है एक बयान, वस्तुतः,

यह तो उस सुनने-समझने वाली स्त्री पर है

कि वह उस वक्तव्य को लेती कैसे है !