माँ को कभी सीरियसली लिया ही नहीं
माँ ... माँ है.... और क्या !
कभी ध्यान गया ही नहीं कि माँ भी एक अदद शख्सियत है
कितनी बार झल्लाया
कितनी बार सताया
कितनी बार रुलाया .....
नहीं है इसका कोई हिसाब
बाबू से हमने यही सिखा कि माँ को डांटने से पहले सोचना नहीं पड़ता
यह भी ख्याल नहीं आया कि माँ को भी दर्द होता होगा
दुखता होगा उसका भी मन
दरअसल ... माँ का अपना कोई मन है ... ख्याल ही नहीं आया
ऐसा भी नहीं था कि माँ से पिटा नहीं मैं ...
पर ... वह पिटाई हरबार यूँ ही - सी लगती
माँ का क्रोध ... कभी क्रोध जैसा लगा ही नहीं
...........
..............
.................
और आज जब उग आया हूँ परदेसी जमीन पर
जहाँ सब कुछ जुटाना पड़ता है जुगत भिडाकर
चाहे हवा ... चाहे पानी ... चाहे प्यार ... चाहे नींद...
आज भी गुस्सा ही आता है माँ पर
कि साथ क्यों नहीं है मेरे
कम से कम उसके सीले आँचल में सुकून तो मिलता
माँ .... तुम्हारा स्पर्श ,
कहाँ से पाऊं .... कहाँ से लाऊं इस बाजार बन गये शहर में
तुम्हारा आँचल .... और आँचल की सुरक्षा ...
जो बचा लेती थी बाबू के भयानक कोप से ....
माँ ... माँ है.... और क्या !
कभी ध्यान गया ही नहीं कि माँ भी एक अदद शख्सियत है
कितनी बार झल्लाया
कितनी बार सताया
कितनी बार रुलाया .....
नहीं है इसका कोई हिसाब
बाबू से हमने यही सिखा कि माँ को डांटने से पहले सोचना नहीं पड़ता
यह भी ख्याल नहीं आया कि माँ को भी दर्द होता होगा
दुखता होगा उसका भी मन
दरअसल ... माँ का अपना कोई मन है ... ख्याल ही नहीं आया
ऐसा भी नहीं था कि माँ से पिटा नहीं मैं ...
पर ... वह पिटाई हरबार यूँ ही - सी लगती
माँ का क्रोध ... कभी क्रोध जैसा लगा ही नहीं
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और आज जब उग आया हूँ परदेसी जमीन पर
जहाँ सब कुछ जुटाना पड़ता है जुगत भिडाकर
चाहे हवा ... चाहे पानी ... चाहे प्यार ... चाहे नींद...
आज भी गुस्सा ही आता है माँ पर
कि साथ क्यों नहीं है मेरे
कम से कम उसके सीले आँचल में सुकून तो मिलता
माँ .... तुम्हारा स्पर्श ,
कहाँ से पाऊं .... कहाँ से लाऊं इस बाजार बन गये शहर में
तुम्हारा आँचल .... और आँचल की सुरक्षा ...
जो बचा लेती थी बाबू के भयानक कोप से ....
4 comments:
उम्दा लेकिन ब्यौरे और डालें तो कविता और भी...
बहुत सुन्दर रचना!
--
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
"नन्हें सुमन"
बहुत सुन्दर शास्त्रीजी.... धन्यवाद.
bahut acchha likha hai, sach hum aksar nahi sochte ki maan ko kaisa lagta hoga ..
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