Saturday, May 14, 2011

इतिहास नहीं है कोई ठहरी किताब

इतिहास नहीं है कोई ठहरी किताब
कि कोई भी अपने मतलब का पन्ना खोल ले
और न ही कोई बहती नदी
कि डुबकी लगा ले हर ऐरा-गैरा...
और न ही है वह कोई पुराना पीपल
कि आकर बैठकर उतारे थकान कोई राही-बटोही...
यह तो है एक सतत प्रयोगशाला
जिसमें तजुर्बे किये जाते है इंसानियत और ख्वाब के
कि अगर कभी आती तो
आता ज़लज़ला ....
बदल जाती है तस्वीर ज़माने की
रुक नहीं जाती है इतिहास की कार्रवाई
गोया ..बदल जाता है रंगो-मिजाज
सिर्फ झाँकने भर से नहीं मिल जाती है निज़ात
कीचड़...गारे...चूना... और भी बहुत सारा सामान
सहेज सहेज कर रखा था हमने ही कभी
आओ , सब मिल कर बनाएँ एक आशियाना
एक आंधी नहीं उजाड़ सकती है हौसलों का महकमा
इतिहास हमारा है
चंद किस्सों से नहीं बदल जाती है तकरीर
ये तो बच्चों के मन बहलाने की सूरत भर है।

2 comments:

राजीव तनेजा said...

बहुत...बहुत ही बढ़िया...
आपसे काफी कुछ सीखने को मिलेगा..

रवीन्द्र दास said...

आभार मित्र...कविता भा गई... संतोष हुआ. राजीव भाई !