Tuesday, May 17, 2011

बचा ली होगी तुमने अपनी वो मुक्त हंसी

हो रही थी बरसात
पर ... मुझे लगा कि हंस रही हो तुम |
जबकि तुमने तो कहा था
...खत्म नहीं हो जाती है दुनिया शाम हो जाने पर भी
मैंने नहीं लिखी फिर कोई कविता ...
कविता क्या , चिट्ठी भी नहीं लिख पाया कोई
कई साल हो होने को है ....
रोज रोज पढता हूँ ढेर सारे अखवार ....
बड़े ही अनाड़ी और लापरवाह होते हैं ये लोग भी
नहीं समझते हैं समाचार की अहमियत ...
कुछ भी छापकर खानापूरी करते हैं...
क्या तुम किसी को दिखे न होगे कहीं भी.. कभी भी ...
पर न कोई सूचना ... न कोई फोटो ...
ऊब चुका हूँ
पर जब चलती है हवा
तुम्हारी खुशबू से लबरेज .. जैसे अभी छूकर आई हो तुम्हारे बालों को
तुम्हारा इस तरह गायब होना
बन जाना था एक मंदिर का ... पत्थरों की मूर्तियों वाला
एक उजाड़ मैदान का
एक भीड़ भरे रेलवे स्टेशन का ....
जहाँ नहीं उतरते है मेरे अपने
नहीं .. नहीं खत्म हुई है दुनिया
अभी अभी पिया है पानी मैंने ... साँस भी ली है अभी अभी
रहा होगा तुम्हारा ही निर्णय अचानक गायब होने का
सचमुच ...
नहीं होता है मतलब प्यार का कि कोई गर्क हो जाये मुसीबतों में
बचा ली होगी तुमने अपनी वो मुक्त हंसी
कि जैसे हो रही हो बरसात मुसलाधार... झमाझम ..
कविताओं का क्या है ....
मोबाईल फोन से चल जाता है बहुतों का काम
प्यार और कविता का विज्ञापन बनाना भी नहीं है कम मुश्किल
और हो ही जाती है बरसात गाहे-ब-गाहे
सुन लिया करूँगा तुम्हारी हंसी ...
दुनिया खत्म थोड़े ही हो जाएगी सिर्फ तुम्हारे चले जाने से

2 comments:

राजीव तनेजा said...

सुन्दर कविता...
मुझे लगता है कि... "बचा लिया होगा तुमने अपनी वो मुक्त हँसी" के बजाय "बचा ली होगी तुमने अपनी वो मुक्त हँसी" होना चाहिए...
पता नहीं मैं सही हूँ या नहीं...
शायद हूँ... :-)

रवीन्द्र दास said...

आप बिलकुल सही हैं ..राजीव तनेजा जी