Monday, July 25, 2011

क्षमा कर दें पिता

समय से बहुत आगे निकल गए

अपने पिता को

अपने समय से लिथडा मैं

याद करता हूँ,

कि कैसे हम उन्हें सर्वशक्तिमान की नजरों से देखते रहे थे

उम्र भर, जबकि आज मैं

कालविद्ध हो, करता हूँ महसूस

जो उम्र के बढने से बढता ही जाता है

घनत्व बेबसी का भी...

जो करना होत है मुकाबला अचानक आई विपत्तियों का

बिना जताए अपनी साँसों को भी

कितना त्रासद

और विडम्बना से लबालब होता है

समय

जो आपके आश्रित समझते हैं सुपरमैन

आपको

और आप होते हैं बेबस और बेसहारा....

क्षमा कर दें पिता !

हमारी नासमझ और सपनीली मासूम आँखों ने

नहीं देखी वह साँसत

जिसे दबाए रखा हिम्मत की ओट में....

आज तो समझ ही सकता हूँ

जो बढती उम्र का पहाड

पैदा करती है, कई कई नदियाँ बेबसी की

और मिला देती है आखिर तक

मौत के महासमुद्र में...

जीते जी पिता के

नहीं समझ पाया जो

आज तर्पण करते हुए कर रहा हूँ महसूस

कि कितना बेबस होना है पिता होना !!!


1 comment:

Anonymous said...

kya khoob kaha hai sir aapne.