Thursday, September 29, 2011

अचानक हो जाती थी बारिश

अचानक हो जाती थी बारिश
शहर के लोग
नहीं हो पाते थे अभ्यस्त,..... कि अनायास
कोसने लगते थे सरकार को ।
दूर देश के सैलानियों को
नहीं दिखती थी जो दरिद्रता, जो
ढंकी छुपी थी चकाचौंध
अंग्रेज़ी भाषा
स्वस्थ लोग
चम चमाती कारों की ओट में
वहीं कहीं बडी बडी इमारतों में....
अपनी वफ़ादारी की नुमाइश करते देसी नस्ल के लोग
छोटी छोटी तनख्वाह को समझते
ईश्वर की कृपा
जानते हुए हाइब्रिड लोगों की कारस्तानियाँ...
जी तोड मेहनत से पाए ज्ञान से
बढी हुई पदवी लेकर
छुप जाते शामों को
पाव भर सस्ती... पर अंग्रेज़ी शराब पीकर
घरों में बन जाते 'वह'
दिन भर जिनके मुंह से अपना बद नाम
सुनने को तरसते ।
गीली हो जाती उनकी ज़िन्दगी
अचानक हो गई बारिश से
अकसर, खयालों में, हो जाते अमीर
गीलेपन से निकलकर
पहुँच जाते अमेरिका... यूरोप.. वहाँ...
जहाँ न काम करना
न सीलन में ज़िन्दगी काटना
बस्स... ऐश करना....
और सितम ढाकर बगल में लेटी सन्न मादा पर
मर जाते सुबह तक....
और सुबह,
कौआ के बोलने से
बिल्ली के रास्ता काटने से
बीबी के कुछ कहने से ... झल्लाते हुए लोग
अचानक हो गई बारिश से
किस्मत
और सरकार को दोष देते हुए
कीचडों
गाडियों
और सुख-दुःख के साथियों से बचते हुए
शहर के लोग
नहीं हो पाते अभ्यस्त
अपनी वास्तविक ज़िन्दगी के
गोया हो जाते हैं व्यस्त
अपनी ही बस्ती से बन संवर कर निकली हुई
औरतों के गोश्त को देखने में
अपने आप अकेले अकेले ।

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