सभी बोल रहे है
सभी बोल रहे है
तोल तोल कर, गुन गुन कर
बहुत लोग तो बस ... सुन सुन कर
बोल रहे हैं
निरीह शब्दों से खेल रहे.....
जैसे कुलीन पिता अपनी संस्कारी बेटी की ज़िन्दगी से
खेलता है.... निश्शंक... निर्विरोध.
और लिखी जा रही है कविता
हो रहा मनोरंजन.... कहकहे...
दंभ भरे चेहरे से बेटी के बाप जैसा
विनम्रता का मेक-अप किए...
कभी नहीं थे शब्द इतने बेबस...
मसलन, भ्रष्टाचार, प्रेम, कविता...जैसे शब्द
ऐसे इधर उधर लुढक रहे
जैसे अबोध बच्चों के हाथ में पडी कोई गेंद
तीन रूपये में फुटपाथ पर बिकने वाली..
2 comments:
antim panktiyon ne dil jeet liya
NICE.
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Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
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MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.
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