Monday, October 17, 2011

आदमी का बच्चा कुढ़ता है

सीधा चलने के हामी
कुछ लोग,
हमारे समय के
कहीं...
किसी अनजान चौराहे पर
किसी बहुकोणीय घेरे में खड़े
हतप्रभ हैं
कि जैसे चिन्तामग्न हों
जाना किधर है!
छोटी छोटी आंखों में
छोटे छोटे सपने
जैसे, मां का संतोष
जैसे पिता की बेबसी का अन्त
जैसे, बहन की शिक्षा का समुचित वातावरण
इन सपनों में
घुली मिली अपनी जिदंगी
आटे में नमक की तरह
परिदृश्य भी बदलता है
भावबोध भी बदलता है
स्वाभाविक है
बदल जाना
मन का
सपनों का
और समस्याओं का
जब नहीं दिखती है
गहरे पानी में जमीन
तो दिखता है अपना चेहरा
सांफ-सांफ
दुखने लगता है-अपना मन
दूर देश में
अकेलापन है
अकेलापन आईना है
जहाँ मन देखने लगता है-अपने घाव
अपनी दुनिया
अपना सत्य
अपना...
अपना सब कुछ
एकान्त का शोर
भीड़ का अकेलापन
आदमी का बच्चा कुढ़ता है
हंसता है समय की हंसी
सोता है
खाता है
पहनता है
और सोचता भी है-समय के साथ
समय-
जो असमय चला आता है जिदंगी में
कैनवास-स्याह और संफेद हैं
चित्र रंग-बिरंगे हैं
सपने रंगीन हैं
दुख भी सुहावना है
और सुख...?
मादक और निजी
जीवन समय के साथ
और चिन्तन समय के परे
योजनाओं ने ग्रस लिया सपनों को
और अब,
बहुकोणीय घेरे में खड़े मुस्कुरा रहे...
विकल्पों की कमी नहीं
चाहे जिधर निकल जाओ!

1 comment:

Onkar said...

khoobsoorat panktiyan