बदल रही है तुम्हारी छवि
तुम्हारे बदलते चेहरे के साथ
और यह भी कोई भ्रम नहीं
कि तुम अभी भी मेरे साथ ही चल रहे.
मुझे इस क्या !
किसी भी परिवर्तन से गुरेज नहीं
सारी कवायद तो समय के साथ होने की रही
पर जुबान की जैसे ही बढी ताकत
इन्सान.... जैसे मैं, छोटा ...और छोटा होता गया
प्यार की खामोश दुनिया में
दुःस्वप्न की मानिन्द, शक्ति-विमर्श करता है जब अट्ठाहास
तुम्हारे चेहरे का बदला भाव....
देखा हो कभी शायद, काँपती ज्यों लौ दीये की.
तुम्हारी शरीर से मनुष्य होने की यात्रा का पडाव
आज कहीं फिर से शरीर पर आ ठहरी है
अशरीरी देवता... प्रेतात्माओं की तरह
और मैं अकेले कहीं अर्ध-निद्रा में परिवार परिवार बुदबुदा रहा
कालिख निकल रही दीए की रौशनी से
शायद, बत्ती की रुई में मैल है... जो बदल दो
तो हो जाए फिर से रौशन घर-बार !
4 comments:
कल के चर्चा मंच पर, लिंको की है धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।
--
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
tel me mail hai......vaah..bahut khoob likha hai nirman se deep jalao to ujala bhi addbhut hoga.happy diwali.
सुन्दर रचना प्रस्तुत की आपने...
आपको दीप पर्व की सपरिवार सादर बधाईयाँ....
सुन्दर रचना
Post a Comment