Wednesday, November 9, 2011
सुबह होती है
सुबह होती है
और मुझे नई शुरुआत का भ्रम होता है.
पर जब शामिल होता हूँ
दुनियादारी में
पुराने रगडे यूँ ही मुँह बाये खडे मिलते है
जैसे कल थे
और मुझे जूझना होता है
समय का इतिवृत्त भुलाकर...
सुबह का अर्थ
सुबह में ही चुक जाता है...
2 comments:
राजीव तनेजा
said...
कटु परन्तु सत्य
November 9, 2011 at 11:23 AM
Onkar
said...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
November 12, 2011 at 5:21 AM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
कटु परन्तु सत्य
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
Post a Comment