मुझे नहीं चला पता कि कब तुम बदल गए
जबकि कायदे से बदलना चाहिए था समय को
और खुशियाँ मनानी थी मिलकर...
लेकिन वक्त तो वक्त है
किसी के सोने जागने, पाने-पिछडने या जीने मरने से नहीं ठहरने वाला !
ऐसा नहीं है कि 31 दिसंबर के रात बारह बजे अस्पताल सूना हो जाएगा
या मृत्यु का देवता न्यू-इयर पार्टी में मशगूल हो जाएगा...
कुछ भी न तो रुकेगा
न ही बदलेगा.... जो भी ऋत का विधान है
पर हम तो उत्सवधर्मी लोग हैं...
खुशियाँ तो मनाएंगे
चाहे मेरे शोर से मेरा पडोसी चिढे
कल कई लोगों से उसकी निन्दा करवा दूँगा...
कोई छोटी बात थोडे ही है
आज जा रहा है यह वर्ष
और हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे...
स्वागत न करें नव वर्ष का...
हम उत्सवधर्मी लोग... खुशियाँ तो मनाएंगे
चाहे कुछ फ़र्क पडे या न पडे !
1 comment:
bahut sundar aur bahut alag
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