Thursday, March 1, 2012

हम अपना करतब दिखाते हैं

तरह तरह से हम अपना करतब दिखाते हैं
रिझाते हैं
उन लोगों की नज़र में आते हैं
कि वे रखें हाथ हमारी पीठ पर, तब
जब हम भीड में खोए-से अपनी अस्मिता खोज रहे होते हैं
हम में से किसी का नमस्कार
कुबूल कर लेते है जब वे
वह जी उठता है होकर उम्मीदपरस्त
कि वे मुझे 'अपना' मानते हैं....
..... और इस तरह , सहयात्रियों के बीच वह
हो उठता है अचानक विशिष्ट
बन जाता है सम्मान और ईष्या का पात्र.
ऐसा तब हो रहा है
जब योग्यता और अयोग्यता के मसले पर
आन्दोलन हो रहे हैं समाज-व्यापी ...
"योग्य होना तो पहली शर्त है"
इस पर कोई बहस कहाँ है !
बहस योग्यतम होने की है
और जारी है करतब दिखाना ... छल, बल, दल से
वे सब जानते हैं
फिर भी ऐसा मानते हैं
कि यह तो हमारी परंपरा रही है
इसे बचाए रखना भी हमारा ही दायित्व है
बच्चो ! हम तुम्हारा शोषण नहीं, परंपरा का पोषण करते हैं ...
करतब दिखाना जारी है
जारी है करतब दिखाना ....

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